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Saturday 11 January 2014

सुअर की औलाद

By -  Siddharth Bharodiya

सुअर की औलाद क्यों लिखा ? 

बचपन से ही धर्मेन्द्र मेरे आदर्ष हिरो रहे हैं । गुन्डों के साथ लडते समय उनको गुस्सा आता था तो ऐसा कुछ बोलते थे, मुझे खाली याद ही है जीवनमें नही उतारा है । फिर भी ऐसा लिखना पडा । आप को भी समज में आ जायेगा कि क्यों लिखा और आप भी बोलेन्गे सुवर की औलाद ! 

इसाईयों की एक कहानी में कहा गया है की इसा मसिह अपने काफिले के साथ कहीं जा रहे थे तो रास्ते में एक पापात्मा मिली । पापात्मा उन के चरणो में पड गई, कहने लगी मुझे मारना नही । इसाने उसे मारा नही पर बाजु में टहलते हुए सुवर में उसे डाल दिया । तब से बेचारा सुवर बदनाम हो गया ।

 कुसरत की भूलों को सुधारते सुधारते आदमी सभ्यता बनाता रहा, कुदरत की कुछ भूलें सुधारना आदमी के बसमें नही था तो उसे स्विकारते हुए आगे बढा । कुदरतने आदमी को प्राणी के रूपमें ही बनाया था और जंगली प्राणी की तरह ही जीना था लेकिन इस बात को आदमी ने नही स्विकार किया और सदियों तक कुदरत से लडते हुए सभ्य आदमी बन गया, कुदरत की दी हुई एक अमुल्य भेंट बन गया, आदमी ने अपने लिए आदमी होनेका गौरव प्राप्त कर लिया, कुदरत की इस भूल (हम मानव की द्रष्टिसे) को सुधार लिया । कुदरत की दूसरी भूल, आदमी आदमी में फर्क, फर्क ताकत का, बुध्धि का, बरताव का, जेन्डर का, इस भूल के आगे आदमी बेबस था, उसे स्विकारते हुए उस से निपटने के अलग से रास्ते खोजता रहा । 

सृष्टि का क्रम चलाने के लिए हर प्राणी को काम करना होता है, खाने का प्रबंध का काम, बचने के लिए लडाई का काम, नयी जनरेशन पैदा करने का काम, मानव समाज चलाने के लिए मानवों को भी काम करना होता है । मानव की अलग अलग क्षमताओं के कारण विसंगति पैदा होती थी । एक मानव का काम दूसरा नही कर सकता था, सबकी बुध्धि या शारीरिक शक्ति एक नही थी । सब से प्रथम कुटुम्ब प्रथा बना कर पूरुष मानव और स्त्री मानव को जोड दिया, शक्ति के अनुसार ही काम करने के लिए आदमीयों को प्रोत्साहित किया जाने लगा और सब को एक दूसरे के सहयोग से, एक दूसरे के पूरक बन कर जीना और काम करना सिखाया गया, बिलकुल अशक्तों के लिए धर्म में ही दया-दान का प्रावधान रख्खा गया जीस से वो भूख से ना मरे, दूसरों की मेहनत पर वो भी अपना जीबन पूरा कर लें । बुढे मानव प्राणी को कुटुम्ब प्रथाने ही बचा लिया ।

चंचल मानव मन, स्वार्थ, विचारभेद, असंतोष आदी कारणों से समस्याएं होती रही लेकिन मोटे तौर पर ठीक ही चला आ रहा था ।

मानव जात की इस सिस्टम को तोडने के लिए, आदमी का आदमी होने का गर्व और गरिमा तोडने के लिए दानव समाजने सामाजिक डार्विनवाद की नीतियां तो पहले से ही चला रख्खी थी पर उस में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण पैदा करने के लिए चार्ल्स डार्विन को वैज्ञानिक बना दिया । और उन के द्वारा कहलाया गया की आदमी के पूरखें बंदर थे । 

डार्विन की प्रथम थियरी On the Origin of Species (1859) में मानव विकास की बात का अतापता ही नही था, उसका ध्यान पौधों और जानवरों के विकास पर ही केंद्रित था । बादमें उसने The Descent of Man (1871) द्वारा प्राकृतिक चयन का अपना सिद्धांत मानव के लिए चलाया । आलोचकों के अनुसार यह वो काम था जो घर और विदेश में साम्राज्यवाद की क्रूर सामाजिक नीतियों को न्यायोचित ठहरा देता है । सबसे पहले सामाजिक डार्विनवाद के साथ अंग्रेज समाजशास्त्री हरबर्ट स्पेंसर जुडा था । सामाजिक जन समूहों के बीच की स्पर्धाओं से पैदा होते परिणाम को स्पेंसरने " योग्यतम की उत्तरजीविता " के साथ जोडा ।  उस के सोशल स्टैटिक्स ( 1850) और अन्य कार्य में, उसने कहा कि स्पर्धा से ही सामाजिक विकास के माध्यम से स्वचालित रूप से मानव इतिहास में समृद्धि और अद्वितीय व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विकास होगा । सरकारी प्रोग्राम से गरीबों को मदद नही करनी चाहीए, समाज के भले के लिए उनको मरने देना चाहिए । 

स्पेंसरने 1850 अपना सिध्धांत बताया, डार्विनने २१ साल बाद  1871 वो सिध्धांत को अपनाया । समाजशास्त्री का सिध्धांन्त एक वैज्ञानिकने मान लिया ! कारण क्या था ? कारण थे धन माफिया । बेंकर माफियाओं ने १८५० के दशक में शेरबाजार के सटोरिये डार्विन को मिशीनरियों के साथ उन की नौका में देश विदेश की सफर कराई, उसने तराह तराह के पशुपक्षी देखे, अभ्यास किया और ऐसे उसे विज्ञानिक डार्विन बनाया और उसकी थीसीस की बूक छपवाई । उस बूक का पैसा ज्यादा नही मिला पर बादमें पूरी जिन्दगी उसे टीप मिलती रही की कौन से शेर खरीदते रहना है । बादमें उस शेर बाजार की कमाई पर ८ नौकरों के साथ बडे से महलों जैसे मकान में रहा ।

डार्विन क्या बतायेगा की आदमी प्राणी है, वो तो जाहिर बात है आदमी जड या वनस्पति नही प्राणी है, सारी दुनिया जानती थी । उसने आदमी को बंदर की औलाद साबित करने की कोशीश की । जब जीनेटिक सायन्स आगे बढा, डीएनए की खोज की गई तो डार्विन जुठा साबित हो गया । जुठा तो था ही, जुठे लोगों ने खडा किया था तो जुठा साबित होना ही था । डार्विनवादी डीएनए के विज्ञानिकों के सवालों के जवाब नही दे पा रहे हैं । डार्विनवादियों की बातें सुन कर इस्कोन के श्री प्रभुपाद इतने गुस्सा हो गये थे कि उन्होंने डार्विन को "रास्कल" तक कह डाला था ।   

Prabhupada: Darwin is a rascal. What is his theory? We kick on your face. [expose your bogus philosophy] That's all. That is our philosophy. The more we kick on Darwin's face, the more advanced in spiritual consciousness. He has killed the whole civilization, rascal. Where is that evidence, creation of life from matter? Is there any evidence in the history? 

Dr. Hauser: No, but as we know, the evolution of life has gone through different stages of... How do you...?

Prabhupada: Darwin's theory. Do you mean to say, Darwin's theory? 

Dr. Hauser: Yes, yes. 

Prabhupada: That is nonsense. Darwin was a number-one nonsense. Yes. Rascal. He has confused the whole world. 

Dr. Hauser: Hmm. Why...?

Prabhupada: Evolution of matter. Matter cannot evolve. That is not possible. 

Dr. Hauser: But evolution of life... 

Prabhupada: What is that life? That is different from matter. That is a different energy. That I am speaking. Matter is... Life is the origin of matter. The evolution is not of the matter, but of the life. That Darwin does not know. Therefore I say nonsense. He does not know that.

Dr. Hauser: Yes. But I feel in the... 

Prabhupada: Just like this is an apartment. So from this apartment, you go to another apartment. So it does not mean that this apartment has evolved to that apartment. I, the person, I create that apartment, or I prefer that apartment. Not that this apartment has evolved into that apartment. 

Dr. Hauser: Yes, I can see what you mean. Yes. 

Prabhupada: Yes. Darwin's nonsense is there. He is changing the apartment. Apartment is becoming a different apartment. That is not a fact. Just try to understand. This room cannot develop into another room. But I, the resident of this room, I can go from this apartment to another apartment. Or I can create another apartment. This is evolution.

[Srila Prabhupada from Room Conversation, with Dr. Christian Hauser, Psychiatrist, September 10, 1973, Stockholm]

http://www.prabhupada.org.uk/articles1/he_has_killed.htm  

सामाजिक डार्विनवाद (बाजारवाद)

सामाजिक डार्विनवाद 19 वीं सदी में चलाये गये सामाजिक डार्विनवाद में साबित करना था या एक विचार स्विकार्य बनाना था कि पशुओं और पौधों की तरह मानव जीवन में भी अस्तित्व के संघर्ष और प्रतिस्पर्धा में प्राकृतिक चयन के परिणाम " योग्यतम की उत्तरजीविता" ("survival of the fittest") का नियम लागू होता है ।

 सामाजिक डार्विनवादियोंने ब्रिटिश प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन द्वारा विकसित विकास के सिद्धांतों (theories of evolution) का आधार लिया । कुछ सामाजीक डार्विनवादियों ने खोज निकाला कि सरकारों को गरीबी जैसे सामाजिक बुराईयों के इलाज या ऐसे ही अन्य कारणों के लिए अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के प्रयास से मानव स्पर्धा के साथ हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । इस के बदले, "अहस्तक्षेप" (laissez-faire)   पोलिटिकल और आर्थिक सिस्टम बनाइ गई । चलता है, करेन्गे, सब का भला होगा ! सामाजिक और कामधंधों की बाबतों में स्वार्थ और स्पर्धा पर जोर दिया गया । वैसे तो सामाजिक डार्विनवादी कहते हैं कि हम "जंगल के कानून" की वकालत नही करते लेकिन उन के ज्यादातर तर्क से व्यक्ति, जातियां, राष्ट्र की शक्ति और सत्ता में असंतुलन पैदा होता है, कुछ लोग ज्यादा फिट है सर्वाईव करने के लिए दूसरों की तुलना में । 

बायोलोजी, स्पर्धा, संघर्ष जैसे शब्दों के आधार पर जो मानव समाज की व्याख्या करते हैं वे सभी सामाजिक डार्विनवादी है । अतीत और वर्तमान की सामाजिक नीतियां और सिध्धांत को हटा कर बायोलोजि की जैविक खोज के कारणों को आगे ला कर सरकारों की शक्ति को कम करना इन सामाजिक डार्विनवादियों की विशेषता है । सामाजिक डार्विनवाद की अवधारणा के पिछे  नस्लवाद, साम्राज्यवाद , और पूंजीवाद  है । यह करुणा और सामाजिक जिम्मेदारी की अस्वीकृति है । 

स्पेंसर की 1883 में अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान उस का मेजबान स्टील निर्माता एंड्रयू कार्नेगी था । उसे बुद्धिजीवियों और कुछ व्यापारियों का काफी समर्थन मिला । 1880 के दशक का सबसे प्रमुख अमेरिकी सामाजिक डार्विनवादी विलियम ग्राहम समर कई मौकों पर  दर्शकों को बताता रहता था कि " योग्यतम की उत्तरजीविता " के सिध्धांत का कोई विकल्प नहीं है । उस के आलोचक कहते थे समर "डॉग-इट-डॉग" ( कुत्ता कुत्ते को खाये) जैसी दमनकारी सामाजिक नीतियों की वकालत कर के उसे जायज बताता है ।

survival of the fittest के नियमसे अमरिका और युरोप के देश तिसरी दुनिया के नागरिकों को लूटकर तगडे बन गये । अपने घरमें भी छोटे छोटे धंधे बंद हो गये और राक्षसी कद की मल्टिनेशनल कंपनियां बन गई । नागरिक नौकरी करने पर मजबूर हो गये । दुनिया पर लडाइयां थोपते रहे, दूसरे देशों को कमजोर करते रहे, खूद कातिल हथियार बनाते रहे और दूसरे देशों को रोकते रहे । उन के इस नियम में लाखों का नर संहार जायज है । स्पर्धामें देश या नागरिक या धंधे रोजगार टिक नही सकते उसका मिट जाना जायज है । मजदूर काम नही कर सकता तो उसे मरने देना चाहिए । किसान किसानी के धंधे में बाजार का सामना नही कर सकता तो आत्महत्या कर ले वही अच्छा है ।

भारत की खिचडी समाजवादी नीति में ये "लेजेज फेर" नीति लागू होती है । भारत में विदेशी बडी कंपनियों का आगमन और भारत की अपनी कंपनियों का बंद हो जाना या बीक जाना एक बडा सबूत है । किसानो को अपनी हालत पर छोड देना, उनके उत्पादन को बाजार के सट्टेमें चडाकर किसान विरोधी बाजार का रूख कर देना दूसरा सबूत है । सशक्त होते मध्यमवर्ग को अशक्त करने के लिए मेहन्गाई और टेक्स के बोज तले दबा देना तिसरा सबूत है । लिस्ट बहुत लंबा है ।    

डार्विनवाद और मानव सुधारणा 

डार्विन से पहले फ्रांसिस गॅल्टन ने एक आंदोलन शुरू किया था "युजेनिक्स" के लिए (eugenics), यह एक "विज्ञान" है  मानव स्टोक में सुधार लाने के लिए । ये लोग मानव समुह को मानवों का स्टोक मानते थे, वो मालिक और दुनिया की जनता उन की संपत्ति, उन के लिए "मानव संसाधन" । यकिन ना हो तो पूछ लेना भारत के "मानव संसाधन" मंत्री से वो क्या समजते हैं भारत की जनता को । इस लिए वो मानवजात की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहते हैं ।     

युजनिक्स की काली छाया लगभग सभी समसामयिक घटनाओं पर घूमता रहा है । युजेनिक्स 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में लोकप्रिय हुए सामाजिक डार्विनवाद से और मजबूत हुआ । उस के वाद की नितियां या सच कहो तो अनितियां तो सदियों से चली आ रही थी, बलवान निर्बल की स्पर्धा, प्रतियोगिता और असमानता, " योग्यतम की उत्तरजीविता " । डार्निन को पैदा करना और उन अनितिओं के वाद को डार्विन उपमा देना जगत की जनता को विज्ञान की नजर से स्विकृत कराना था ।  कई सामाजिक डार्विनिस्टने जीव विज्ञान को ही भाग्य, अयोग्यता, " कंगालीयत, मानसिक बीमारी जैसे सामाजिक रूप से हानिकारक लक्षण का एक व्यापक स्पेक्ट्रम बना लिया था और आनुवंशिकता के साथ जोड दिया था ।

१८८३ मे, मानव जाती को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए, अनचाही मानवजातियों से छुटकारा पाने और मनचाही मानवजातियों को मल्टिप्लाय करने के विचारों को प्रमोट करने के लिए अंग्रेज विज्ञानी, चार्ल्स डार्विन के चचेरे भाई फ्रांसिस गॅल्टन ने युजनिक्स शब्द को उछाला था । गॅल्टन के जमाने में आनुवंशिकी के विज्ञान को अभी तक समझा नहीं गया था । फिर भी, जब किसान बीजों के चयन से पौधों में सुधार ला सकता है और खास विशेषताओं से मजबूत जानवरों की अच्छी  नस्लें प्राप्त कर सकता है तो मानवों की नसल भी नही सुधारी जा सकती ?

गोरी प्रजाने अपने आप को सर्व श्रेष्ठ प्रजा मान लिया और अपने हाथमें बाकी प्रजा को सुधारने का ठेका ले लिया ।   

Take up the White Man's burden—

दुनिया की दूसरी प्रजा गोरी प्रजा पर का बोज है, यातो उसे सुधारेन्गे या मार देन्गे । उन दिनों  एक गीत भी प्रसिध्ध हुआ था "टेइक अप ध वाईट मेन्स बर्डन" । दूसरी प्रजा को आबादी बढाने के हक्क नही, दूसरी प्रजा गोरों की संपत्ति मात्र है, वो प्रजा और उन के प्रदेश गोरे लोगों के गुलाम है ।

गत ५० सालमें आदमी के जीन्स में रहे डीएनए के मोलेक्युलर खोज लिए हैं, समज लिए हैं, उसमें छेडखानी करना सिख गये हैं, आज प्रयोगशाला में दो दो नारियों और तिन तिन पुरुषों के जीन्स मिलाकर मानवों की एक नयी ही प्रजाति पैदा करने की कोशीश हो रही है । 

सामाजिक डार्विनवाद और साम्यवाद 

साम्यवादी मानते हैं कि आदमी सिर्फ प्राणी है, जन समुह भेंड की टोली है । ( पीपल को शीपल कहते हैं ) । लेकिन आदमी में धर्म और संस्कार है इसलिए आदर्ष भेंड नही है । विद्रोह करता है बराबर कंट्रोल नही हो रहा है ।

मानव जात को कंट्रोल करने के लिए धनमाफिया यहुदियोंने अपनी विश्व संस्था युएन द्वारा योजना बनाई है ।

(१) मानवी जब जानवर है तो उसे धर्म और संस्कार की जरूरत नही ।

सारी मानव जात से अपने धर्म और संस्कार हटा लिये जाय । आदमी को आजादी के ख्वाब दिखा दिखा कर उसे बिलकुल आजाद खयाली और निरंकुश बना दिया जाए जीस से वो विद्रोह कर के अपनी सभ्यता के सारे बंधन को तोड सके । इतना निरंकुश बना दो कि धर्म के उपर सब से बडा प्रहार सेक्स के द्वारा हो सके । पूरी दुनिया को सेक्समय कर दो धर्म अपने आप भाग जायेन्गे । आदमी को इतना स्वार्थी और लालची बना दो कि छोटी से लालच देने पर कुत्ता बन जाये । 

(२) जब आदमी जानवर है तो उसे समाज और कुटुंब की जरूरत नही ।

कुटुंब के कारण ही आदमी में धन की लालच ज्यादा होती है । कुटुंब के कारण ही वो धन बचाता है, घरमें अनाज का संग्रह करता है । ये सब करप्शन है । ऐसे जन समुह को जीतना भारी पडता है । इस लिए कुटुम्ब प्रथा को तोड कर लिव इन रिलेशन और अस्थायी विकल्पों की और आदमी को मोडा जा रहा है ।    

मानवों को इतना निरंकुश बना देना है कि दो आदमी का साथमें रहना मुश्किल हो जाये ।   

(३) आदमी प्राणी है तो उसके पास प्रोपर्टी नही होनी चाहिए ।

एक जानवर के पास प्रोपर्टी कैसे हो सकती है ? साम्यवाद में प्रोपर्टी रखना मना है, सभी चीजें सरकारी होती है । नागरीक खूद सरकार की प्रोपर्टी है । आने वाले वैश्विक साम्यवाद में आदमी बच्चे का भी हक्कदार नही होगा । सरकार ही बच्चों की मालिक होगी, अपने हिसाब से पालन करेगी । उसकी निव डाली गयी हैं बच्चों को स्कूल में खाना खिलाकर । मांबाप को टेक्स और मेहंगाई और बेरोजगारी की मार से कमजोर कर के बच्चों पर वैसे ही दया नही दिखई है । नयी पिढी को सरकार की ऋणी बनाना है और माबाप से ज्याद सरकार ख्याल रखती है ऐसा एहसास दिलाना है ।

(४) मानव प्राणी है तो उसमें सोचविचार कर सके ऐसी बध्धि नही होनी चाहिए । 

आदमी की बुध्धि को सिमीत करने के लिए और अपने पक्ष मे करने के लिए स्कूलों में अभ्यासक्रमों को आसान किया जा रहा है और मोडा जा रहा है । सिर्फ एक अच्छा सा मजदूर बने ऐसे कोर्स चलाने हैं । अभी कपिल सिब्बल का बयान पढा था कि कोलेज से आर्ट्स और सायन्स के डिग्री कोर्स बंद करने हैं क्यों कि ये दोनो कोर्स नौकरियां नही दिलाते हैं ।

आदमी को बौध्धिक द्रष्टिसे बिलकुल हल्का फुल्का बनाने के लिए, उसकी शालिनता और गंभीरता मिटाने के लिए उसे जबरदस्ति हंसानेवाले कॉमेडी शो के नाम पर प्रोग्राम की लाईन लगी है । आदमी की जिन्दगी को ही कॉमेडी कर देना है, हंसते हंसते आदमी हर जुल्म सहता रहे आसपास क्या हो रहा है उसे पता ही ना रहे । सोच ही ना सके की ये जुर्म है या कुछ और, ये गुलामी है या आजादी ।  

(४) सदियों से मानव समुह धर्म और राज्य के कानून से कंट्रोल होता आया है । अब धर्म के बदले राज्य के कानून के साथ टेक्नोलोजी आ गई है । सेटेलाईट, रेडियो टेक्नोलोजी, इन्टरनेट और कोम्प्युटर की मदद से आदमी को कंट्रोल करना है । शुरुआत आधारकार्ड से हुई है । यह एक अनन्य नंबर है, आदमी नंबर, इस नंबर का आदमी पूरी दुनिया में और कोइ नही । वो नंबर कौन है, कहां रहता है, क्या कामधंधा करता है, उस के पास प्रोपर्टी या धन कितना है, पैसा किस किस बेन्कमें रखता है, क्या बिमारी है, ब्लडग्रूप, उसका डीएनए सेम्पल, दवाई की हिस्टरी, सब कुछ उस नंबर के साथ जोडा जायेगा । नागरिक के मालिकों को ये सब पता होना चाहिए । 

(५) आदमी जानवर है तो उसका कत्लेआम करना हो तो भी कोइ हर्ज नही । इसी नियम से सभी साम्यवादी देशों में करोडों का नरसंहार हुआ है । इसी नियम पर युएन का डिपोप्युलेश एजन्डा नंबर-२१ चल रहा है । 

सामाजिक डार्विनवाद भारतका

भारत का डार्विनवाद उपर के दोनों का मिश्रण है । गांधी, नेहरू, आंबेडकर और लोहिया जैसे नेताओं की देन है । जर्मनी में जब हिटलर का उदय हो रहा था तो लोहिया वहां पढते थे और यहुदियों की संगतमें डार्विनवाद सिख रहे थे । नाजियों की नजर नही पडी वरना लोहिया भी यहुदियों के साथ जेल में जाते ।

साम्यवाद भारत में चलनेवाला नही था तो लोहियाने बीचवाला रास्ता अपनाया । गरीब के पास यदी १०० रूपया है तो धनवान के पास अधिक से अधिक १००० रुपया होना चाहिए । धनवान नागरिक गरीब नागरिक से १० गुना ही अमीर बन सकता है । अगर धन ज्यादा है तो छीन कर गरिबों में बांट दिया जाना चाहिए । हम जानते हैं लोहिया का यह वाद चला नही है लिबर्टि या छुट के नाम बाजारवाद ही चला है ।

मानव संहार में भारत का समाजवाद भी पिछे नही है । आतंकवाद, नक्षली या इस्लामी को चलाये रख्खा है, वर्ग विग्रह को प्रायोजित किया जा रहा है । आदमी को भूख से मरने दिया जा रहा है ।

सुवर शब्द उपयोग करने का कारण यह फोटो और समाचार है ।

 

नई दिल्ली : एक ताजे अध्ययन में दावा किया गया है कि मनुष्य का जन्म नर सूअर और मादा चिंपैंजी के मिलन से हुआ। इस बात का दावा जॉर्जिया विश्वविद्यालय के जेनेसिस्ट यूजिन मैकार्थी ने अपने शोध में किया है। मैकार्थी पशुओं के संकर नस्ल पर विशेषज्ञता रखते हैं।

मैकार्थी ने अपने शोध में कहा है कि चिंपैंजी और मनुष्य में असमानताओं के साथ-साथ ढेर सारी समानताएं भी पाई जाती हैं। मैकार्थी के मुताबिक मनुष्य में चिंपैंजी और सूअर दोनों के लक्षण पाए जाते हैं। बंदरों और मनुष्य के बीच जो मुख्य अंतर है, वह सूअर के साथ वर्ण संकर की वजह से है।

चिंपैंजी और मनुष्य के जीन में बहुत सारी समानताएं होने के बावजूद दोनों की शारीरिक संरचना में मूलभूत अंतर पाया जाता है। इन अंतरों के कारण ही चिंपैंजी और मनुष्य अलग-अलग हैं और चिंपैंजी एवं मनुष्य के बीच अंतर की भरपाई सूअर के जीन द्वारा होती है।

मैकार्थी के मुताबिक रोंआहीन त्वचा, उसके नीचे सबक्यूटेनियस वसा का आवरण, हल्के रंग की आंखें, उभरी हुईं नाक, घनी भौंहें आदि सारी शारीरिक विशेषताएं सूअर से मिलती-जुलती हैं। मनुष्य की जो शारीरिक संरचनाएं चिंपैंजी से मेल नहीं खातीं, वे संरचनाएं सूअर से मेल खाती हैं।

मैकार्थी का दावा है कि सूअर के चमड़े का कोष और हृदय दोनों मनुष्य से मेल खाते हैं और चिकित्सा क्षेत्र में भी इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं।  

मैकार्थी के अनुसार यह 'संकरायन प्रक्रिया' कई प्रजन्मों से चलती आ रही है। मैकार्थी का दावा है कि सूअर और चिंपैंजी के बीच 'बैक-क्रासिंग' भी चली और इसी प्रक्रिया में संततियों में जीन्स का जोड़-घटाव चलता रहा।

 बात समजमें आ गई ? ये सुवर की औलादें अब आदमी को सुवर की औलाद साबित करना चाहते हैं ।

सुवरों का विश्ववाद ( New world order)

उपर के सारे डार्विनवाद का उपयोग कर के आदमी को अपना गुलाम प्राणी बनाने के लिए उन सुवरोंने दुनिया के हर देश में अपने प्यादे बैठा रख्खे हैं । उन सुवर प्यादों में राजनेता है, छोटे छोटे धर्मों के नकली धर्म नेता है, बन बैठे समाजसेवि है, कला, साहित्य, लेखक, पत्रकार और मिडिया है, उद्योगपति और व्यापारी है । ये सभी मिलकर आदमी को एक ही दिशामें ले जा रहे हैं, धन माफियाओं की गुलामी की और ।

कहना है भारत माता की जय ! पर भारत माता के ही टुकडे करने हैं । कहना है हम सब एक है लेकिन हम में ही विभाजन करना और बनाये रखना है । भारत अखंड हो और हम एक हो तो उनके मालिक सुवरों के लिए हम सिरदर्द बन जाते हैं ।

राज्य से लेकर ग्राम पंचायत, गली महौल्ले पर स्वराज के नाम पर दिमकों को बैठा दो जनता का खून पीने के लिए, अलग अलग भागती स्वराज की इकाइयों से देश की अंदरूनी सिस्टम को इतना बिगाड दो की सरकार खूद कमजोर पड जाये दुश्मनो का आसान टार्गेट बनाने के लिए । ये सुवर के प्यादे असली दुश्मनो का नाम नही लेते देश की अंदर की बाबतों को ही कोसते रहते हैं । क्यों की दुश्मनो से ही धन पाते हैं, दुश्मन ही उनको लाईम लाईट में लाते हैं । 

सुवर के प्यादे टेक्स हटाने की लालच से नागरीक को समजाते हैं आप के धन पर आपका अधिकारी नही हैं, अपने घर पर नही रख सकते, हमारे मालिक के बेन्कों मे रख्खो । अपनी मरजी से किसी को नही दे सकते, दिया तो दंड देना होगा । 

क्या भारत का आदमी हकिकत में निर्बोध प्राणी बन गया है या मैंने उपर लिखा है और श्री प्रभुपादने मेरा समर्थन किया है ऐसा मानव है, सभी प्राणीयों से अलग इश्वर की एक विशेष रचना ?



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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│  http://narendrasisodiya.com
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प्रशांत भूषण भारत का दुश्मन हैं

"RAW (Research and Analysis Wing) के पूर्व अधिकारी 'आर. एस. एन. सिंह कल शाम 'इंडिया न्यूज़' चैनल पर बोल रहे थे..!"
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"उनका गुस्सा और आक्रोश देखिये, प्रशांत भूषण का नाम लेते ही ऐसा लगा मानो उनकी आँखों से खून निकल जाएगा..!"
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"उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि 'आम आदमी पार्टी' में कौन-कौन से लोग हैं। सारे माओवादी भरे पड़े हैं वहाँ, उन्होंने कहा कि मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ, रॉ के अधिकारी होने के नाते पूरी जिम्मेदारी के साथ ये आरोप लगाता हूँ कि प्रशांत भूषण भारत के दुश्मन हैं..!"
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"वे चाहते हैं कि किसी भी तरह
सेना कश्मीर से हटे और कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्ज़ा हो जाय, सरहद पर काम किया है मैंने और मालुम हैं हमें कि इनका कनेक्शन किन किनके साथ है..!"
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"अमेरिका ने काफी एजेंट इकट्ठा कर के रखा है भारत में जो अखबारों में लेख आदि लिखते हैं। भारत विरोधी माहौल बनाते हैं प्रशांत भूषण जैसे लोग..!"
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"मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ ये बात कह रहा हूँ। एक खुफिया अधिकारी के नाते, मैं प्रशांत भूषण को कहना चाहूँगा कि तुम सर उठा कर इसलिए घुमते हो क्यूंकि कोई सर कटाता है..!"
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"आम आदमी पार्टी नौटंकी बंद करे और प्रशांत भूषण को पार्टी से निकाले..!"
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( "जागो भारतीय जागो..!" )


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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
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Sunday 5 January 2014

Congress + Communist = AAP

आम आदमी पार्टी पर यह मेरी अंतिम पोस्ट हो मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ..
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Congress +Communist = AAP ..
See the Background Verification Of AAP

1.योगेंदर यादव - सोनिया गांधी की सलाहकार टीम का मेम्बर (NAC -2009-2011)

योगेन्द्र यादव प्रोफाइल उनके विकिपीडिया पर उपलब्ध। देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
http://en.wikipedia.org/wiki/Yogendra_Yadav

2.मनीष सिसोदिया- सोनिया गांधी की सलाहकार अरुणा रॉय की टीम का मेंबर (RTI टीम -2005-06)
http://en.wikipedia.org/wiki/Manish_Sisodia

3.गोपाल राय - कम्युनिस्ट स्टूडेंट यूनियन (AISA)की लखनऊ युनिवेर्सिटी का प्रेसिडेंट (AISA1992)
http://en.wikipedia.org/wiki/Gopal_Rai

4.संजय सिंह- समाजवादी पार्टी (मुलायम सिंह यादव) कार्यकारिणी सदस्य (1998-till 2005 )
http://en.wikipedia.org/wiki/Sanjay_Singh_%28activist%29

5. प्रशांत भूषण -कम्युनिस्ट एक्टिविस्ट (नक्सलियों द्वारा भूषण को मध्यस्त बनाने कि मांग-(IBN7 on 24th April 2012 at 9:38 IST )

IBN7 द्वारा भूषण कि नक्सल मध्यस्तता कि न्यूज़ के लिए यहाँ क्लिक करें
http://ibnlive.in.com/news/cant-mediate-with-naxals-on-ias-officers-abduction-prashant-bhushan/251451-3.html

6. शाजिया इल्मी-कांग्रेसी चाचा की भतीजी और जीजा आरिफ खान कांग्रेसी मंत्री रह चुके है.
http://en.wikipedia.org/wiki/Shazia_Ilmi

7. अरविन्द केजरीवाल-कम्युनिस्ट एक्टिविस्ट (सोनिया गांधी कि सलाहकार अरुणा रॉय कि टीम का मेंबर (2005-06)

केजरीवाल का लेफ्ट CONNECTION जानने के लिए The Sunday Gaurdian Newspaper की नीचे लिखी रिपोर्ट देखे
http://www.sunday-guardian.com/analysis/is-arvind-kejriwal-on-the-left-right-or-centre

साथ मैं केजरीवाल का विकिपीडिया भी नीचे देखें और जाने उनका बैकग्राउंड
http://en.wikipedia.org/wiki/Arvind_Kejriwal

अरुणा रॉय- सोनिया गांधी की मुख्या सलाहकार(NAC Member-2004 to till date) और केजरीवाल सिसोदिया को एक्टिविस्ट बनाने वाली। .... अरुणा रॉय ने केजरीवाल कि नौकरी छुड़वाकर उसे अपनी RTI टीम मैं शामिल किया

अरुणा रॉय का विकिपीडिया भी देख लीजिये नीचे। .
http://en.wikipedia.org/wiki/Aruna_Roy

AAP के DNA मैं कांग्रेस + कम्युनिस्ट है, खुद जांच कर लें....Its only for your kind information...


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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│  http://narendrasisodiya.com
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Saturday 4 January 2014

धनचक्कर

By - Siddharth Bharodiya

क्रिकेट देखते हो ? तब तो देखा होगा बॉलर बॉल को अपने पेन्ट के साथ खुजा खुजा कर जोर से फैंकता है । बिलकुल ऐसे ही अमरिका और युरोप में बसे धनवान यहुदी बेंकर माफियाओं ने भारत में ऐसे लोगों को खूजा खुजा कर फैंके हैं या यहीं पर पैदा किए हैं, खरीद कर या धमका कर, जो दिन रात भारत की मट्टी पलित कर रहे हैं । भारतिय सिस्टम को अपने नाखून से खूजा खूजा कर  लहू लुहान कर रहे है ।
 इस लेख को लिखते समय मैं नीचे रोड पर गया तो एक छोटी सी दवाई की बोटल ठीक मेरे पिछे आकर गीरी । सद्भाग्य से मुझे लगी नही और बोटल मल्टिनेशनल दवा कंपनी की थी, छोटी और मजबूत थी, फूटी भी नही ।
   बहार से आई खुजलियां (प्यादे), अलग साईज और रंग की बोतलें तो सरकार में विविध पद पर, सरकार के इर्द गीर्द, विविध संस्थाओं में पदासिन हो गयी है । खूजली करानेवाली दवा से भरी बोतलें हमारे आसपास मंडरा रही है, गीर भी रही हैं । अभी फुटी नही पर फोडना जरूरी हो गया है ।

हाई लेवल के बीन राजकिय प्यादे ।
हर बोतल में परिवर्तन नाम की खूजली की दवा भरी है । (१) धर्म परिवर्तन नाम की दवा । (२) रिवाज, संस्कृति, रहन सहन परिवर्तन की दवा (३) सत्ता परिवर्तन नाम की दवा (४) व्यवस्था और रिवाज परिवर्तन नाम की दवा (५) अर्थिक परिवर्तन की दवा (६) कानून परिवर्तन की दवा । और यह सभी दवा का उत्पादन युएन नाम की वैश्विक संस्था के संस्थानों में हो रहा है ।
लेकिन ये सभी बाबतों का परिवर्तन करने के लिए पहले इसे रोगिष्ट साबित करने की जरूरत पडती है वरना कोइ दवा क्यों पीए !
आप का ये सिस्टम कराब है, आप का वो सिस्टम सडा हुआ है ऐसे सिधे सिधे कहने से कोइ मानेगा नही । तो प्रेक्टिकली खराब दिखाना पडता है । और दानव समाज सफल भी हो रहा है, भारत का नागरिक मानने लगा है की हमारी सारी बाबतें खराब है, रोगिष्ट है ।
भारत का सिस्टम सडाने के लिए, खराब करने के लिए दानव समाज यहुदी धन माफिया भारत के ही घनचक्करों (बुध्धिहीन) को काम में लगाता रहा है । दानवों ने धन का ऐसा धनचक्कर (धन का चक्कर) चलाया हुआ है जो सतत घुमता ही रहता है । उन के प्यादों ने इस चक्कर को "काले धन" के नाम से बहुत लोकप्रिय बनाया है ।
  

धन का चक्कर दानवों के घरसे शुरु होता है और दानवों के घर ही पूरा होता है । उस बीच कहां जाता है क्यों जाता है वो सब इस फोटोमें बताया गया है, छोटे बच्चे की मां भी सब कुछ समज जायेगी । 
खूजलियों ने काले धन का जो हौआ खडा किया है और उसे निपटने के उपाय बताये हैं उसे समजना पडेगा । 
काले गोरे धन का सफर धनमाफिया के ही घर से शुरु होता है । क्या ये खूजलियां उसे रोक पायेगी ? उन खूजलियों का अपना फंड नही अटक जायेगा ? 
धन माफिया विश्व की सरकारों को टेबल के उपर से लोन देता है और टेबल के निचे से सरकारें गठित करने का धन देता है । उस धन से अपने प्यादों के लिए केम्पेन, लोबिन्ग, चुनावि गरबडियां और मिडिया प्रचार करवाता है । ये दानवों का निवेश होता है । उस निवेश के बदले दानव मूल रकम के साथ सूद तो वसुलता ही है साथ में लगे हाथ उगाही या ब्लेकमेल कर के और धन भी मांग लेता है । राज नेता को उस रकम लौटाने के लिए घोटालों द्वारा कमाना पडता है । अपने बोस के लिए प्लस अपने खूद के लिए बहुत बडा घोटाला कर देता है । उस रकम को दानव समुह के पास पहुंचाने के बहुत जरिये होते हैं, हवाले के द्वारा भारत में ही दानव समुह के अन्य प्यादों में बांटने के लिए ऑर्डर करता है या दानवों की खूद की अपनी रिजर्व बेन्क और स्विस बेन्क की सिस्टम का उपयोग करते हुए अपने पास ले लेता है । डोलर किस शिकार ने भेजा उस का हिसाब अपनी बेंक रखता है, बाकायदा उस शिकार का खाता खोला जाता है ।     

http://post.jagran.com/sakhi-rbi-has-records-of-annual-black-money-transfers-of-rs-23k-crore-cag-1306384775
In yet another startling revelation about the black money being parked abroad, every year over Rs 23,000 crore was transferred from RBI accounts to unknown accounts in tax havens abroad and that the Central Bank has no record of any such transactions.
 इस समाचार में साफ लिखा है, हर साल आरबीआई से २३००० करोड रुपिया विदेश में कोइ अनजान खातों चला जाता है । चोर का बेन्क चोरी का माल ना ले जाये तो कौन ले जायेगा ?  
क्या खूजलियों को पता है आरबीआई खूद यहुदी धन माफिया रोथ्चिल्ड का बेंक है ? और भारत की जनता को अर्थक्रान्ति के नाम पर उसी बॅन्कर माफिया के हवाले करना चाहते हो ? 
 http://www.bharatmitramanch.com/post/view/197
 दानव समुदाय ने अपने ही प्यादों पर दबाव बढाने के लिए, जीस से वो ज्यादा उगाही कर सके और पोलिटिकल सिस्टम को जनता की नजर से गीरा सके, कौन से खातों में रुपये जाते हैं वो बताने और उस का प्रचार करने के लिए जुलियन असांजे नाम की खूजली को खडा किया । जनता की सहानूभूति दिलवाने के लिए उस पर जुठा बलत्कार का केस किया और उसे भगौडा घोषित कर दिया । आधा सत्यवादी तो सिर्फ उस केस के कारण से हो गया और बाकी पूरा सत्यवादी बना अपनी विकीलिक्स में बताये गये खूलासों से ।

उस जुलियनने हमारे महानुभावों के बेन्कखाते और रकम को बताता एक लिस्ट रिलीज किया । पक्ष,विपक्ष और मिडियामें हंगामा होता ही रहता था कालेधन के नाम, लिस्ट मिला तो जोर पकडा, ओफिसियल लिस्ट भी सरकार के हाथ आ गया उन बेन्कों से । लेकिन सस्पेन्स ! क्या बताते ?
बताते की इस लिस्टमें सोनिया का नाम है और आंकडा बता रहा है की वो दुनिया की ४ थे नंबर की सबसे धनी महिला है । होगी, आंकडेमें होगी, पर क्या वो कभी सोनिया को मिलेगा ? जी नही । उस आंकडे से जो दलाली बनती है वोही सोनिया के पास होगा । आंकडा बडा तो दल्लाली भी बडी । भारत के अंदर जो कमाती है वो लटके में ।

भारत की जनता को उल्लु मान लिया है? जो दानव अन्ना जैसे शराफत के पूतले भारत में खडे करते हैं और भारत की जनता के माथे पर ठोकपाल ठोकवा देते हैं वही दानव अपनी बेंक के लिए ऐसी ट्रीटी कारता है, चोरी का माल रख्खो और चोर का नाम मत बताओ ? खैर, जै हो दानवराज की !
नाम किसीका भी उजागर नही किया जा सकता ? कारण ? दानवों के बीच का समजौता बता दिया । नाम बताते तो वो आदमी जनता के सामने आ जाता और दानवों का भांडा फोड देता । कहता "हां, जरूर मेरे नाम का खाता है पर वो धन मेरा नही, मुझे कभी नही मिलेगा । जबरजस्ती मुझसे लिया गया हैं" ।
आप को बता दें कि उध्योगपति को भी उसे बरबाद करने की धमकी दे कर लूटा जा रहा है, महज टेक्स बचाने के खातिर कोइ उध्योगपति अपना धन कॅशमें या विदेश में नही रखता । उसे नशा होता है अपने उध्योग का विस्तार करने का, अपना धन वहां लगायेगा । बॅन्क से लोन लेने से भला होता है टेक्स भर के अपना धन ही काम में लगाओ ।

कम्पेर करो, किस देश का काला धन कितना है । चीन तो साम्यवादी है, साम्यवादी धन माफियाओंने तो चीनमें माओ को पैदा किया था जैसे आज भारत में माओवादी आप पार्टी की खूजली गेंग को खडा किया जा रहा है । चीन को तो लूटना उन दानवों का हक्क हो सकता है । पर भारत, क्या भारत उनके बाप का है ? उन से लडने के बदले सबसे कम १२३बीलियन के आंकडे से जनता को डारा कर व्यवस्था परिवर्तन करने के लिए निकल पडे हैं ? व्यवस्था को सुधारने के बदले परिवर्तन ? चोरों को पकडने के बदले जनता को ही गुलाम बनाना है ? 

बाबा रामदेवने एक नयी खूजली को इन्ट्रोड्युस किया है । बेन्कर माफियाओने बडे प्लान से उसे खडा किया है । भारत की जनता को बेन्क का गुलाम बनाना चाहता है और उसमें नरेन्द्र मोदी को भी लपेटना चाहता है । मोदी वाली बात ही सबसे ज्यादा खतरनाक सिध्ध हो जाती है अगर मोदी भी उसमे शामिल हो जाते हैं तो ।
केजरीने तो जनता को फोकट के बीजली पानी का लोलीपोप खिलाया था ये खूजली तो लोलीपोप का खजाना लेजर आया है । और मोदी द्वारा वितरित करना चाहता है । और राम देव को अक्कल ही नही है, अपने कारखाने में कैसे कैसे खूजलियों को बनाते हैं और देश के माथे पर थोपते रहते हैं । उस के भक्त फालतू में अफसोस करते हैं की अन्नाने रामदेव को धोखा दिया, केजरीने रामदेव को धोखा दिया ।
अन्ना और केजरी तो रामदेव की ही प्रोडक्ट है, धोखा कैसा । धोखा तो रामदेव दे रहे हैं देश को ।

ये खूजली जनता के दिमाग में घुसा रहा है कि उस के मालिक बेन्कर माफियाओं की कंपनिया भारतमें आयेगी और भारत का कल्याण कर देगी । आज एफडीआईने अपना काम शुरु नही किया है तो सब उलट पुलट है । वो काम करने लगेगी तो सब सही हो जायेगा । उसने अर्थतंत्र की स्थिरता के लिए एफडीआई को सबसे उपर बैठा दिया है और भारत सरकार को सबसे नीचे रख्खा है । भारत का जो भी कल्याण करना है एफडीआई ही करेगी सरकार नही । तब तो मोदी का क्या काम है ? तूम खूजली लोग ही चलाओ देश को !  

इस साम्यवादी खूजली का पेट का दर्द इसमें है । जनता टेक्स नही देती है । क्यों नही देती, देती तो है और इतनी कमाई तो होनी चाहिए । और ये क्यों भूल जाता है कि इकोनोमी जनता चलाती है, सरकार तो उसमें दखल देती है कहीं उल्टा सिधा ना हो जाये ।
 उसने अभी से मान लिया है की आनेवाले समयमें जनता को एफडीआई याने मल्टिनेशनल कंपनिया के जरिये ही काम करना है, उसमें नौकरी कर के कमाना है । बिलकुल सही आकलन किया है । देश के पूराने सब धन्धे व्यवसाय इन कंपनियों के आगे टीक नही पायेन्गे, जनता मजबूर होनेवाली है अपना धंधा छोड कर नौकरी करने के लिए । किसानों से भी जमीन छीन ली जायेगी बाजार की नोक पर, रसिया की तरह बंदुक की नौक नही चलेगी इतनी राहत रहेगी ।

उस के सुजाव क्या है ? एक बाजू लोलीपोप और दूसरी और बांबू । लोलीपोप खाते जाओ और पिछे से बांबूकी मार खाये जाओ ।
(१) जनता को कोइ भी टेक्स नही चुकाने हैं । जिरो टेक्स ।
(२) आदमी केशमें व्यवहार नही कर सकता, जो भी व्यवहार करना है वो बेन्क के जरिये करना है । और बेन्क १०० रूपयेमे से दो रुपया टेक्स का काट लेगी याने २% । उसमें ३५ पैसे बेन्क के बाकी १.६५ सरकार के । 
(३) ५० के उपर की सभी नोट बंद कर देने की । जीस से आदमी बेन्क का टेक्स बचाने के लिए केश व्यवहार ना करे ।
(४) दया दिखाकर २००० रुपये केश ट्रान्जेक्शन की छुट दी है, जीस से आदमी सब्जी खरीद सके, रिक्षा भाडा या बस भाडा दे सके । जब २६ रुपया कमानेवाले गरीब नही है तो उनके लिए २००० की छुट बहुत है । लेकिन ये दो हजार महीने के लिए है या दिन के लिए वो स्पष्टता नही की है ।
अब उस के भाषण पर आते हैं । शुरुआत धर्म से की पर एजन्डा अधर्मि बेन्करमाफियाओं का चलाया है । उसने कहा करंसी कोइ कोमोडिटी नही आदमी अपने पास नही रख सकता । बेन्कमें रखना चाहिए । इस को पता नही हजारों साल तक दुनिया बिना करंसी से अपने व्यवहार चलाती थी । चीज के बदले चिजें या सेवा, सेवा के बदले चीजें या अन्य, सेवा बार्टर सिस्टम थी । करंसी से थोडी सहुलियत हो गई इतना ही । इसे दुःख है की हमारे देशमें पैसा कोमोडीटी बन गया है । बेन्क का पैसा करंसी में कन्वर्ट कर के लोग साथमें लेकर धुमते हैं इसलिये दूसरे को पैसा नही मिलता । इस का खेल देखो । आदमी का कमाया पैसा आदमी का नही बेन्क का है, आदमीने अपने पास रख लिए तो दूसरे को नही मिलता । क्या आदमी की कमाई पब्लिक बाथरूम है ? दुसरे आदमी को कमाने में कौन आडे आता है । कमाना महत्व का है या दूसरे की कमाई को उधार लेना ? भारत में पहले आदमी उधार देते थे उनको बदनाम कर के रोका गया ये तो सुदखोर है ! आज भी देते हैं, लेकिन छुपके, डर डर के । बेन्कों की मोनोपोली लानी थी ।
ये लोकशाही है या ठोकशाही ? जनता को अपनी कमाई को अपना कहने का अधिकार नही, अपनी कमाई अपने पास रखने का हक्क नही । साफ बात है, स्टेलिन के चेले आ गये हैं कलेक्टिवाईजेशन के लिए ।
असली बात पर आते हुए कहता है केश मनी ट्रेसेबल नही होता है, नोट कीस कीस के पास कैसे जाती है किसी को पता नही होता है, बेन्कमनी ट्रेसेबल होता है, सब का रेकोर्ड होता है । किस का पैसा किसके पास गया सब पता चलता है ।
यह माफिया आदमी की तरह पैसे को भी ट्रेसेबल बनाना चाहते हैं । आदमी को तो आधार कार्ड की चीप लगा कर सेटेलाईट से ट्रेसेबल बनानेवाले ही है और ये आदमी पैसे को भी ट्रेसेबल बनाना चाहता है । 
अमरिका को महिमा मंडित करता है । २००१ के ट्विन टावर को तोडने के बाद वहां कोइ आतंकी हमला नही हुआ है । क्यों की सब आतंकियों के बेन्क खाते सील कर दिये थे । दुनया की जनता जानती है की उस आतंकी घटना खूद अमरिकाने कराई थी और इस मासुम को मालुम ही नही । आगे कहता है की ब्रिटन केशलेस सोसाईटी की तरफ जा रहा है । ब्रीटन जा रहा है तो हमे क्या, उसे जाने दो ।
http://www.bharatmitramanch.com/post/323
दाउद की बात कर रहा है, सुरेश कमलाडी की बात कर रहा है । दाउद क्या कनपट्टी पर बंदुक रखके फिरोती मांग सकेगा क्या कि ला चेक दे दे ? क्यों नही, बेन्क ट्रन्जेक्शन करा लेगा । दाउद खूद ट्रेसेबल है तो भी उसे पकडते नही, रुपया ट्रेसेबल हो जाता है तो क्या फरक पडेगा । सुरेश कमलाडी की तो बात ही मत करो, आपके अमरिकी बोस को ही ट्रेस होना पडेगा ।
अब थोडे जमीनी सवाल
(१) जीन लोगों की कमाई कम है और इन्कम टेक्स के दायरे में नही आते हैं उनको भी बेन्क टेक्स भरना होगा । आदमी गरीब भी है तो भी टेक्स भरना होगा ।
(२) भारत में किसानो को इन्कम टेक्स नही भरना होता है उनको भी भरना होगा ।
(३) कुछ धन्धे होते हैं जीसमे कम नफा और व्यापार बडा होता है । आठ आने की कमाई पर धन्धा करना पडता है । उनका तो धंधा चौपट हो जायेगा । १०० के पिछे ५० पसे कमाने जाओ तो देढ रूपिया नूकसान जाता है । बेन्क २ रुपिया ले जायेगी । आदमी को कमाना है तो कमसे कम सवा दो रूपये का नफा तो चाहिए । फिर तो धन्धा कम हो जायेगा ।
(४) आदमी फिर से बार्टर सिस्टम की तरफ जायेगा । उसे दुनिया का कोइ दानवी कानून रोक नही सकता ।
(५) आदमी हवाले की तरफ भी जा सकता है । उस सेठ से मुझे इतने लेने हैं तूम उस से ले लेना । अरे यार मुझे भी उसे देना है तो हम सब का हिसाब पूरा । किसी को कुछ लेना देना नही । फालतू ट्रन्जेक्शन कर के कुत्तों की बेन्क को टेक्स क्यों दें ! बेन्क कुत्तों की हो जायेगी । जनता नफरत करेगी ।
सरकार और बेन्क से ज्यादा भरोसा कारोबारी एक दुसरे पर करता है । एक दुसरे के पेनेन्ट सेट करनेवाले खडे हो जायेन्गेगे । बेन्क को दो रूपये देने से अच्छा है इसे १० पैसे देना ।
(६) भारत से सीए या अन्य ऑडिटर अकाउन्टट की जरूरत नही रहेगी । अपने सामान्य व्यवहार के लिए हिसाब रख्खे जायेन्गे बाकी ओडिट करने की झंजट नही, सब हिसाब वाले बेकार । टेक्स की ओफिसें बंद । सीए का कोर्स ही बंद ।
(७) बेन्क कभी उठ जाता है, टोपी घुमा देता है, हाथ खडा कर देता है की हमारे पास पैसा नही है । और नागरिकों का पैसा डूब जाता है । क्या होगा उस समय ?
(८) सबसे महत्व की बात ये हैं । दानवों की कानी नजर भारत के घर घरमें रहे सोने पर टीकी है । दानव समाज जैसे उन के बापका माल हो ऐसे सर्वे कराता है, हिसाब लगाता कै कितने टन होगा । उस सोने को हडपना है । बीचमे डिमेट सिस्टम लाये थे की सोना बेन्कमे जमा कराओ, उसपर ब्याज मिलेगा । सबा अरब की आबादी है, एबरेज ५ लाख का माल निकले तो दानवों का तो बल्ले बल्ले !! कैसे भी तिकडम लगा के लूट लेन्गे ।    
मेहंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार मिटाने का ठेका लेते हैं, कैसे होगा ? भारत क्या अमरिका है कि तीसरी दुनिया के देशों के नागरिकों के खून पसीनों की कमाई पर पूरा देश अमीर बन के ऐश करेगा ? अर्थ शास्त्र का कटु सत्य नही जानते ? गरिबों के कंधों पर ही पूरे अर्थतंत्र का भार होता है । अमीर नौकरी नही करता, अमीर मजदूरी नही करता वो सब गरीबों को ही करना पडता है ।
मेहंगाई तो आपके ही बोस दानव समाज की देन है । मुकर जाना है आदमी को दिये वचन से । नोट धारक को रूपया अदा करने का वचन देता हुं ! कौन सा वचन ? कागज का या उस की वेल्यु का ? वेल्यु कम करते जाओ जीन्दगी भर महेनत से की गई आदमी की बचत को खा जाओ ।  
आदमी को हर दिशा से ट्रेस करना है, आधारकार्ड, बेन्क खाता, प्रोपर्टी, नौकरी धन्धा, ओबामाकेर । आदमी बिलकुल गुलाम । आदमी जरा भी सरकार का विरोध करे मामला खतम । लोकशाही को बेच के खा जाओगे तूम लोग तो ।पेरेलल अर्थतंत्र है तभी आज भारत टिक गया है । वरना रुपया देखी रूपिया खाउ के हिसाब से नागरिकों के रूपये छीन लिए जाते । फ्रोड से, टेक्स के बहाने और मेहन्गाई से । रूपये की ही वेल्यु जिरो कर के ।
धन के बल पर साम्यवादी धन माफिया दुनिया के मालिक बन बैठे हैं । और उन के प्यादे हमे इकोनोमी सिखाने आ गये हैं । तूम क्या करते हो मोदी अब ?  वो आजादी की बातें, वो सरदार का पूतला साम्यबादी भारत में खडा करोगे ?
और भारतवासी आप क्या करोगे ? खूजली गॅन्ग जिदाबाद या जुता ?
ArthaKranti proposal -It will Fully Change India
https://www.youtube.com/watch?v=GVfmUmB0bpM&list=UUusGjRmjnPEOAAIWtKEjw8g
Live Baba Ramdev on Narendra Modi
http://www.youtube.com/watch?v=YdYlIZb0CEk


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राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था

लेखक - नरेन्द्र सिसोदिया

देखो भाई, राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था । राजीव दीक्षित के नाम को खराब ना करो ।

राजीव दीक्षित जी टेक्स सिस्टम को बदलना चाहते थे और इंकम टेक्स और बाकी टेक्स को खतम करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा था की गाँव गाँव बैंक खोल दो, गरीब से लेकर अमीर तक सारे के सारे "वीसा मास्टर कार्ड" के भरोसे हो जाओ, पूरी तरह इंटरनेट और बैंकिग के भरोसे बैठ जाओ ।

मेरे पास पूरे सबूत है भारत को नेता लोगो ने जितना बर्बाद नही किया उससे कही ज्यादा बैंकिग सिस्टम ने बर्बाद किया है । बैंकिग ना होने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकृत थी और हम सोने से व्यापार करते थे इसीलिये हमने दूसरे देश से सोना लाते थे । घर घर में किलो से सोना रहता था। सोने के मंदिर बना डाले और हमें सोने की चिडीयाँ बोलते थे । बैंकिग सिस्टम ने पूरी अर्थव्यवस्था को केन्द्रीकृत कर दिया और इकोनोमी से संबंधित सारे निर्णय कुछ १०-२० लोगो के हाथों में सिमट गया । आज पूरा देश कर्जे में डूबा है , देश को बाहर की बैंकलो के कर्जे तो देने है साथ ही अपने देश की बैंको के भी । शायद चीन को छोडकर दुनिया का आज कोई भी देश ऐसा नही है कर्जे में डूबा ना हो। आखिर दुनिया के सारे देशो को कर्ज किसने बाँटा ? इसका जवाब ये है की बैंकिग सिस्टम वैधानिक पर अलोकतंात्रिक (legal but non-democratic) तरीके से किसी को भी कर्ज दे सकता है और ये कर्ज किसी की बचत नही होती है ये कर्ज "हवा में बनाया हुआ पैसा" होता है। "हवा मे बनाया हुआ पैसा"?? जी हाँ , बैंक का सारा काम इंटरनेट पर होता है, जब किसी को कर्ज मिलता है तो वो उसके खाते में सिर्फ कुछ अंक ही तो चडाने होते है।

अर्थक्रांती टेक्स सिस्टम को बदलने का प्रयास कर रही है वो अच्छी बात है लेकिन इसके बदले वो बैंक पर हमारी निर्भरता को बडा रही है । आज बहुत से लोग है जो बिना बैंक के जी रहे है लेकिन अर्थक्रांती प्रस्ताव को पूरा लाने के बाद आप बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट के बिना चाय भी नही पी पायेंगे और ना ही सब्जी खरीद पायेंगे ।RBI भी पूरी तरह सरकार के हाथों में नही है उसकी नकेल भी फेड के हाथो में है, फेड की नकेल वैश्विक बैंकर माफीया के हाथों में है । राजीव भाई थोडा और जीते तो इन बैंकर माफीया तक भी पहुँच जाते । अर्थक्रांती प्रस्ताव इन बैंकर माफिया लोगो को इतनी शक्ति देगा की इसके लागू होने के कुछ साल बाद अगर आपने इनके खिलाफ कुछ भी बोला तो आपको चुप कराने के लिये ये लोग बस आपका खाता सील कर देंगे और आपको चाय पीना भी मुश्किल हो जायेगा।

ये कुछ वैसा ही जैसे इंटरनेट पर हजारो ब्लोग उपलब्ध है आपकी आवाज उठाने के लिये और सरकार एक दिन ये प्ला
देखो भाई, राजीव दीक्षित ने कभी भी अर्थक्रांती का सपोर्ट नही किया था । राजीव दीक्षित के नाम को खराब ना करो ।

राजीव दीक्षित जी टेक्स सिस्टम को बदलना चाहते थे और इंकम टेक्स और बाकी टेक्स को खतम करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा था की गाँव गाँव बैंक खोल दो, गरीब से लेकर अमीर तक सारे के सारे "वीसा मास्टर कार्ड" के भरोसे हो जाओ, पूरी तरह इंटरनेट और बैंकिग के भरोसे बैठ जाओ ।

मेरे पास पूरे सबूत है भारत को नेता लोगो ने जितना बर्बाद नही किया उससे कही ज्यादा बैंकिग सिस्टम ने बर्बाद किया है । बैंकिग ना होने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकृत थी और हम सोने से व्यापार करते थे इसीलिये हमने दूसरे देश से सोना लाते थे । घर घर में किलो से सोना रहता था। सोने के मंदिर बना डाले और हमें सोने की चिडीयाँ बोलते थे । बैंकिग सिस्टम ने पूरी अर्थव्यवस्था को केन्द्रीकृत कर दिया और इकोनोमी से संबंधित सारे निर्णय कुछ १०-२० लोगो के हाथों में सिमट गया । आज पूरा देश कर्जे में डूबा है , देश को बाहर की बैंकलो के कर्जे तो देने है साथ ही अपने देश की बैंको के भी । शायद चीन को छोडकर दुनिया का आज कोई भी देश ऐसा नही है कर्जे में डूबा ना हो। आखिर दुनिया के सारे देशो को कर्ज किसने बाँटा ? इसका जवाब ये है की बैंकिग सिस्टम वैधानिक पर अलोकतंात्रिक (legal but non-democratic) तरीके से किसी को भी कर्ज दे सकता है और ये कर्ज किसी की बचत नही होती है ये कर्ज "हवा में बनाया हुआ पैसा" होता है। "हवा मे बनाया हुआ पैसा"?? जी हाँ , बैंक का सारा काम इंटरनेट पर होता है, जब किसी को कर्ज मिलता है तो वो उसके खाते में सिर्फ कुछ अंक ही तो चडाने होते है।

अर्थक्रांती टेक्स सिस्टम को बदलने का प्रयास कर रही है वो अच्छी बात है लेकिन इसके बदले वो बैंक पर हमारी निर्भरता को बडा रही है । आज बहुत से लोग है जो बिना बैंक के जी रहे है लेकिन अर्थक्रांती प्रस्ताव को पूरा लाने के बाद आप बैंकिंग सिस्टम और इंटरनेट के बिना चाय भी नही पी पायेंगे और ना ही सब्जी खरीद पायेंगे ।RBI भी पूरी तरह सरकार के हाथों में नही है उसकी नकेल भी फेड के हाथो में है, फेड की नकेल वैश्विक बैंकर माफीया के हाथों में है । राजीव भाई थोडा और जीते तो इन बैंकर माफीया तक भी पहुँच जाते । अर्थक्रांती प्रस्ताव इन बैंकर माफिया लोगो को इतनी शक्ति देगा की इसके लागू होने के कुछ साल बाद अगर आपने इनके खिलाफ कुछ भी बोला तो आपको चुप कराने के लिये ये लोग बस आपका खाता सील कर देंगे और आपको चाय पीना भी मुश्किल हो जायेगा।

ये कुछ वैसा ही जैसे इंटरनेट पर हजारो ब्लोग उपलब्ध है आपकी आवाज उठाने के लिये और सरकार एक दिन ये प्लान लेकर आये की फेसबुक पर ही आपको लिखना है और फेसबुक जो इस्तेमाल करेगा उसका इंटरनेट का बिल नही देना पडेगा । कुछ सालो में इंटरनेट के किसी और ब्लोग पर लिखना गुनाह हो जाता है और फेसबुक पर भारत सरकार का पूरा नियंत्रण । इसके बाद आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलते हो तो आपका अकाउंट बंद ।

और कम से कम राजीव दिक्षीत का नाम तो मत डालो अर्थक्रांती के प्रस्ताव में । राजीव जी ने समस्या बताई थी, और ये समाधान बता रहे है जो मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है । हमे थोडा और सोचने की जरूरत है ।
न लेकर आये की फेसबुक पर ही आपको लिखना है और फेसबुक जो इस्तेमाल करेगा उसका इंटरनेट का बिल नही देना पडेगा । कुछ सालो में इंटरनेट के किसी और ब्लोग पर लिखना गुनाह हो जाता है और फेसबुक पर भारत सरकार का पूरा नियंत्रण । इसके बाद आप सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलते हो तो आपका अकाउंट बंद ।

और कम से कम राजीव दिक्षीत का नाम तो मत डालो अर्थक्रांती के प्रस्ताव में । राजीव जी ने समस्या बताई थी, और ये समाधान बता रहे है जो मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है । हमे थोडा और सोचने की जरूरत है ।


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Sunday 29 December 2013

मनी गेम

कुछ विषय ऐसे हैं जो दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं, पैसे का विषय उन में से एक है । ये मानव जात की भावनाओं से जुड गया है क्यों की मनव के लिए पैसे ही सारी समस्या का उपाय है । और पैसा ही सारी समस्या खडी करता है । समस्या खडी इस लिए होती है की मुद्रास्फीति की दर चढ़ता जाता है । जाहिर है, वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढती है फिर उपभोक्ताओं के लिए इस की किमत बढ जाती है । उपभोक्ता की खरीद शक्ति बढाने के लिए उस की आमदनी बढानी पडती है, मुद्रा छाप कर कॅश मुहैया कराना पडता है । इस लिए मुद्रा आपूर्ति वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति के अनुपात में बड़ा हो जाता है और ऐसा कुचक्र मुद्रास्फीति की दर बढता रहता है ।

मौजुदा करंसी का अपना कोई मुल्य नही है; सिर्फ सेवा या सामान खरीदा जा सकता है । व्यक्ति या राष्ट्र की संपत्ति का आधार उस बात से आंका जाता है की उसने सेवा या किमती सामन कितना उत्पादित किया, कितना वितरित किया और कितना पासमें है, नही की पैसे कितने हैं या कितने प्रिन्ट किये । वास्तव में एक राष्ट्र बिना किसी मुद्रा से लंबे समय तक जीवित रह सकता है अगर सारे उत्पादन सही ढंग से हो रहे हो । सेवा के बदले सेवा, सेवा के बदले सामान, सामान के बदले सामान; ऐसे ही हजारों साल तक राष्ट्र जीवित थे जब करंसी नही खोजी गई थी । वस्तु विनिमय( barter system) का ये सिस्टम १९६० तक भारतमें चलता था करंसी होते हुए भी । उत्पादन और वस्तु विनिमय सभी अर्थव्यवस्था का आधार हैं ।

करंसी का मूल उद्देश्य है वस्तुओं और सेवाओं के आदान प्रदान की सुविधा बढाना ।

सिक्के और कागजी मुद्रा मूल रूप से वस्तु विनिमय की सहायता करने के लिए बनाए गए थे । इस से लोगों को वास्तविक सामान उठाकर जाने की या तुरंत सेवा प्रदान करने की जरूरत नही रही, व्यापार मे आसानी हो गई ।

कागजी मुद्रा की शुरूआत एक "वचनपत्र" (promissory notes) के रूप में हुई थी । वचनपत्र एक ऋण का भुगतान करने के लिए एक लिखित वादा होता है । वचनपत्र लिखनेवाला एक निश्चित मात्रा में सामान प्रदान करने का वादा करता है, कगज की मुदा घारक जब मुद्रा वापस करता है तो वो सामान प्रदान करना पडता है ।

धातु के सिक्के की जगह कागज के नोट का उपयोग १६०० में शुरु हुआ जो हमारी आधुनिक मौद्रिक प्रणाली बन गई । इस नींव रखनेवाले जौहरी थे । जौहरी के पास आमतौर पर शहर में सबसे मजबूत तिजोरियां और लोकर बोक्स होते थे । इस कारण से, कई लोग अपना सोना चांदी या सिक्के हिफाजत के लिए तिजोरीमें रखने के लिए आते थे । उस के बदले में एक कागज की चिठ्ठी मिलती थी जीस पर सोने का वजन आदी लिखा होता था, चिठ्ठी वापस करने पर वो सोना वापस करने का वादा होता था । दुसरे वो लोग भी आते थे जीन को सोने पर उधार धन की जरूरत थी । उन की चिठ्ठि में व्याज के साथ धन मिलने पर सोना वापस करने का वचन होता था ।

पहले प्रकार की वचनपत्री एक प्रारंभिक नोट था जो बाजार में चलने लगा । जीसे सोना चाहिये था वो जौहरी से सोना ले सकते थे । लेकिन जनता को लगा ये तो अच्छा तरिका है, छोटे बडे सोने के जथ्थे पर चिठ्ठियां कटाने लगे, जौहरी के बाप का क्या जाता था, चिठ्ठियां बनाने लगे, किसी की चिठ्ठी खो जाती थी तो उतना फायदा जौहरी को हो जाता था, सोना वापस नही करना पडता था और वापस देने पर सर्विस के बहाने थोडा सोना काट लेने लगे थे या अशुध्धि मिला देते थे । जनता के लिए बहुत अच्छा हो गया, नोट जेब में भी रख सकते हैं, बाजार जाते समय राजा के बनाये भारी भरकम सिक्कों की थैली साथ ले जाने की जरूरत नही रही ।

एक नया रिवाज बना, जौहरियों की इज्जत बढने लगी, जनता का भरोसा भी बढा । जीस आदमी को वाकई में सोने की जरूरत थी वही अपना सोना वापस मांगता था वरना नोट घरमे ही रखते थे । जनता और बाजार ने उस सिस्टम को स्विकार लिया । जब कोइ जौहरी के पास अपने ही नोट ले के गहने बनवाने के लिए जाता था तो मन ही मन मुस्काता था क्यों की जौहरीओं ने दुसरे छोटे बडे व्यापारियों को दूसरी प्रोपर्टी पर हजारों लाखों का कर्ज देकर बाजार में नकली नोट उतार दिये थे, उस यकिन के साथ की अब ९० % जनता अपना सोना वापस नही मांगेगी जो १० % मांगने आयेन्गे उसे दे दिया जायेगा ।

फिर तो बहुत नाटक हुए, बॅन्करों ने जौहरीयों की पोल खोली तो अपना सोना मांगते जन समुह के डर से भागना पडा, बॅन्करों ने वही सिस्टम अपनाया । छोटे बॅन्करों की पोल बडे बॅन्करो ने खोली तो बडे बॅन्करो के आगे सरेन्डर होना पडा। बडे बॅन्करने राज के दरबार में रहे अपने प्यादों का उपयोग कर के कागजी नोट को पूरे राज्य में स्विकार करवाया और इज्जत दिलवाई ।

ये बडे बॅन्क थे बॅन्कर माफिया रोथ्चिल फेमिली के । इन्ही बेंकरों का सिस्टम पूरे युरोपमें चलने लगा । हिटलर ने तोडना चाहा तो दुसरा विश्वयुध्ध इन बॅन्करों ने ही करवाया ।

इन बॅन्करों ने वही पूरानी जौहरी वाली टेक्निक अपनाते हुए नोट बनाने के लिए फॅड रिजर्व बनाया जो थोक में नोट बनाने की परमीशन देती है अपनी ही सेन्ट्रल बेन्कों को जो देश विदेश में फैले हुए हैं । उनमें से भारत का रिजर्व बेन्क भी है । देश के सोने के अवेज में या अन्य संसाधन पर वो सब सेन्ट्रल बॅन्क फॅड से परमीशन मांगते हैं अपने अपने देश की करंसी छापने के लिए । दुनिया के अर्थतंत्र का कबजा करने के लिए, जगत के देशों पर दादागीरी करने के लिए युएन नाम की संस्था बनाई, अमरिका जैसे प्यादे देश को सशक्त बनाया, नाटो की सेना बनाई । अब सोने के मामले में उन की खूद की पोल खूली है तो सोना पाने के लिए हाथपांव मार रहे हैं और देश विदेश के अपने प्यादे राज नेताओं के जरिये उन देशों का सोना लूटने की कोशीश कर रहे हैं ।

भारत की रिजर्ब बेन्कने पद्मनाभ मंदिर को लूटने प्लान तो बना ही लिया है साथ में शीरडी, तिरुपति, सिध्धि विनायक, नटराज मंदिरों को भी कहा है सोना देने के लिए । सोने को इम्पोर्ट किये बीना ही भारत की जनता की सोने की डिमांड पूरी करना है ।

कितना बडा भद्दा मजाक ! ! एक तरफ भारतिय नागरिक सोना ना खरीदे ऐसी सलाह दी जाती है, नागरिकों को रोकने के लिए सोने पर कितने प्रतिबंध लगा रहे हैं तो मंदिरों का सोना हडपने के लिए बेचारे नागरिक याद आये । कौन नागरिक मंदिरका लूटा सोना खरिदना चाहेगा । हम जानते हैं मालिको कों सोने की खेप भेजनी है ।

मामला सेन्सिटिव है ऐसा बोलकर नाम नही बताने की बात कह कर एक बॅन्कर बोलता है मंदिरमें पडा निर्जिव सोना अभी रुपये की हालत सुधार सकता है । रे मुर्ख, मंदिर के सोने का क्या संबंध है रूपये से ? क्या मंदिरों के सोने के अवेज में रूपये छापे थे ? छापे तो तो पूछने की भी जरूरत नही समजी ? हवा के भरोसे ही नोट छाप दिये, अब मालिकों की हवा निकल गई तो तुम लोगों की भी हवा निकल गई और हवा का गॅप मंदिरों की मिल्कर से भरना चाहते हो । जरा चर्च और मस्जिदबालों को भी पूछ लो मेरे से भी तगडा जवाब मिलेगा ।

दुसरा बेन्कर कहता है तिरुपति दुनिया का सबसे धनवान मंदिर है, लगभग १००० टन सोने का मालिक है । पूरे देश के पास १८००० से ३०००० टन है । अभी मंदिरों के ट्रस्टी तैयार नही है ।
अभी आरबीआई का ऐसा कोइ प्लान नही है, आरबी आई से ऐसी कोइ चर्चा नही हुई ।

आरबी आई का प्लान नही है तो ऐसी खबर क्यों आई मिडिया में ? जनता का रिएक्शन जानना चाहते हो ? आरबीआई से चर्चा कर सके ऐसा तू बडा व्यक्ति, मंदिरों के सोने के कयास निकालता आदमी, क्या हवा बना रहा है मंदिरों से सोना हडनने की ? नागरिकों का ध्यान आशाराम पे लगा दो और पिछे से मंदिर को लूट लो, आसान रहेगा ।

जनता या मंदिर सोना जरूर देते, लेकिन लेनेवाला सुभाष बोज होना चाहिए, हजारों भामाशाह है भारत में राणा प्रताप तो लाओ । चोर के हाथ सोना कौन देगा ?


By -  Siddharth Bharodiya

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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
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Saturday 28 December 2013

कैसे और क्‍यों बनाया अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल को, पढि़ए पूरी कहानी!

संदीप देव, नई दिल्‍ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह 'राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)' ने घोर सांप्रदायिक 'सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम' का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर 'परिवर्तन' नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो 'श्रीमान ईमानदार' को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में 'परिवर्तन' में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' ने 'उभरते नेतृत्व' के लिए 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके।  इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था।  

अरविंद को समझने से पहले 'रेमॉन मेग्सेसाय' को समझ लीजिए!
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो  'सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)' अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी 'फोर्ड' द्वारा संचालित 'फोर्ड फाउंडेशन' एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में 'रेमॉन मेग्सेसाय' को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह 'रेमॉन मेग्सेसाय' का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। 'रेमॉन मेग्सेसाय' के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय 'छवि निर्माण' से लेकर उन्हें 'नॉसियोनालिस्टा पार्टी' का  उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी 'एडवर्ड लैंडस्ले' ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई।

ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और 'डर्टी ट्रिक्स' के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति 'क्वायरिनो' की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की 'गढ़ी गई ईमानदार छवि' और क्वायरिनो की 'कुप्रचारित पतित छवि' ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।

उन्हीं 'रेमॉन मेग्सेसाय' के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' मिलकर अप्रैल 1957 से 'रेमॉन मेग्सेसाय' अवार्ड प्रदान कर रही है। 'आम आदमी पार्टी' के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व 'आम आदमी पार्टी' के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी 'फोर्ड फाउंडेशन' के फंड से उनका एनजीओ 'कबीर' और 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' मूवमेंट खड़ा हुआ है।

भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग!
'फोर्ड फाउंडेशन' के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ''कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।'' यही नहीं, 'कबीर' को 'डच दूतावास' से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।

अंग्रेजी अखबार 'पॉयनियर' में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ 'हिवोस' के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है।  इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। 'हिवोस' को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।

डच एनजीओ 'हिवोस'  दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं।  इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने 'पनोस' नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय 'पनोस' के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी 'पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है। 'सीएनएन-आईबीएन' व 'आईबीएन-7' चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई 'पॉपुलेशन काउंसिल' नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही 'रॉकफेलर ब्रदर्स' करती है जो 'रेमॉन मेग्सेसाय'  पुरस्कार के लिए 'फोर्ड फाउंडेशन' के साथ मिलकर फंडिंग करती है।

माना जा रहा है कि 'पनोस' और 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल 'सीएनएन-आईबीएन' व हिंदी चैनल 'आईबीएन-7' न केवल अरविंद केजरीवाल को 'गढ़ने' में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को 'इंडियन ऑफ द ईयर' का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। 'इंडियन ऑफ द ईयर' के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी 'जीएमआर' भ्रष्‍टाचार में में घिरी है।

'जीएमआर' के स्वामित्व वाली 'डायल' कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 'सीएजी'  ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को 'गढ़ा' है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा।

'जनलोकपाल आंदोलन' से 'आम आदमी पार्टी' तक का शातिर सफर!
आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का नारा देते हुए वर्ष 2011 में 'जनलोकपाल आंदोलन' की रूप रेखा खिंची।  इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में 'लॉंच' कर दिया।  अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद 'कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया' के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, 'आम आदमी पार्टी' के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई।

विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और 'कैश फॉर वोट' घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।  

आगे बढ़ते हैं...! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी 'आम आदमी पार्टी' खड़ा करने में सफल  रहे।  जनलोकपाल आंदोलन के पीछे 'फोर्ड फाउंडेशन' के फंड  को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से 'कबीर' व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया।  लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने 'बिजनस स्टैंडर' अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने 'कबीर' को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया।

सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था 'आवाज' की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी 'आवाज' ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी 'आवाज' संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस 'फंडिंग का खेल' खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और 'आम आदमी पार्टी' उसी की देन हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी 'आम आदमी पार्टी' में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि 'फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010' के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

अमेरिकी 'कल्चरल कोल्ड वार' के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल!
फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी 'सीआईए' की नीति को 'कल्चरल कोल्ड वार' का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति  व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने 'सेक्यूलरिज्म' के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से 'भारत माता' की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को 'सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का' समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही।  
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और 'आम आदमी पार्टी' के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?

प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को 'क्रांतिकारी सेक्यूलर दल' के रूप में प्रचारित करने लगी।  प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे।

अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके।  यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी।  आम आदमी पार्टी के नेता  प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी 'अपनी राजनैतिक पार्टी' हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से 'लिटमस टेस्ट' था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी 'ईमानदारी' और 'छद्म धर्मनिरपेक्षता' का 'कॉकटेल' तैयार कर रही थी।

8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस 'कॉकटेल' का ही परीक्षण  है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?

आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके 'एसएमएस कैंपेन' की पारदर्शिता ही कितनी है? अन्ना हजारे भी एसएमएस  कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस  कार्ड के नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा, ''मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।''

प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके 'पंजीकृत आम आदमी'  ने जब देखा कि 'भारत माता' के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर 'मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल' शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, 'इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है', तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि 'बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे।' इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।

याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि 'हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।' उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके।  वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं।

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया 'आखिरी पत्ता' हैं अरविंद!
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में।  मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर 'आम आदमी पार्टी' का निर्माण कराया गया है।

दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से 'आम आदमी पार्टी' की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ''भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।''

कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी 'आम आदमी पार्टी' को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। 'फोर्ड फाउंडेशन' ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का 'ब्रेन चाइल्ड' बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।

'आम आदमी पार्टी' व  उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने 'मेल टुडे' अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और 'मेल टुडे' अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। 'मेल टुडे' से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर 'टुडे ग्रुप' ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र मोदी को रोकने लिए 'कांग्रेस-केजरी' गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण 'मेल टुडे' के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी, इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित 'आम आदमी पार्टी' की असलियत का पूरा ब्यौरा है।

शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार 'मेल टुडे' में लिखा था, ''अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला।  वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं।  केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।''

''आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए 'आम आदमी पार्टी' के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया।  केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें।  एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?''

''बीजेपी 'आम आदमी पार्टी' को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया।  ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।''

''दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का मतलब सिर्फ भ्रष्‍टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता। कांग्रेस की कारगुजारियों की वजह से भ्रष्‍टाचार के अलावा भी कई सारी समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती कीमतें, पड़ोसी देशों से रिश्ते और अंदरूनी लॉ एंड ऑर्डर समेत कई चुनौतियां हैं। इन सभी चुनौतियों को बिना वक्त गंवाए निबटाना होगा।''

''मनमोहन सरकार की नाकामी देश के लिए मुश्किल बन गई है। नरेंद्र मोदी इसलिए लोगों की आवाज बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इन समस्याओं से जूझने और देश का सम्मान वापस लाने का विश्वास लोगों में जगाया है। मगर केजरीवाल गवर्नेंस के व्यापक अर्थ से अनभिज्ञ हैं। केजरीवाल की प्राथमिकता देश की राजनीति को अस्थिर करना और नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है।  ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर मोदी एक बार सत्ता में आ गए तो केजरीवाल की दुकान हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।''

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