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Thursday 26 December 2013

बैंकींग लूट के इतिहास की कहानी

सब लोगो को, बैंक से उधार या लोन या फिर क्रेडिट कार्ड उपयोग करने की प्रणाली नहीं पता होने के कारण ३ तरह की गलतफहमी है
  • पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
  • दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
  • तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।

सच्चाई का इन तीन बातों से कोई लेना देना है ही नहीं । अगर आप पूरी सच्चाई जानना चाहते तो पूरी कहानी पढे ।

(१) भूतकाल

कहानी शुरू होती है कई सालो पहले जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे । तक बैंकिंग सिस्टम नही था । सिर्फ अर्थ-शास्त्र था । आज अर्थ-शास्त्र को बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार ने पूरी तरह से हथिया लिया है । ये सब कैसे हुआ ये जानते है ।

पहले सोने और चाँदी के सिक्के चलने लगे । जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना सोना चाँदी हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई सोना चाँदी बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "पेपर रसीद" मिल जाती थी । ये पेपर रसीद ही शुरूआती पेपर नोट थे । बैंकर लोगो को रसीद बनाना आसान था बजाय कि सोना खोदने की और लोगो को भी इन कागज के नोट को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना सोना होता था उतनी ही रसीद होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को पहला कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी सोने में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था ।  इस तरह बैंकर लोगो को पहली बार इतिहास में अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का पहला प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था ग़रीबों को ।

चलो चलते है दूसरे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास सोना होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस सोने के नाम की नोट देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा । ये था दूसरा प्रावधान जिससे काफी सारी ऐसी बैंक नोट बनाये गये जिसके समानांतर कोई सोना था ही नही ।

लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब सोने के सिक्को में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो कागज के नोट से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना सोना बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना सोना बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने नोट (रसीद ) बाँट रखी है उतना सोना तो है ही नही बैंक में ।

इस दूसरे कदम के चलते दुनिया के अमीर लोग महाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे सोने के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक असली सोने से कई गुणा ज्यादा की रसीदे (नोट) देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देती थी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और ज्यादा गरीब हो गया । कैसे ? अरे भाई मान लो १०० लोग है हर एक के पास १ किलो सोना है । पूरी अर्थव्य्वस्था है १०० किलो सोने की  और हर एक बंदे का मार्केट में रूतबा १% का है। अब बैंकर लोगो ने ५०० किलो की रसीद बना दी है और ४०० किलो की रसीद २ अमीर लोगो को दे दी । इस कारण से ९८ गरीब लोगो के पास ९८ किलो सोना है और बाकी २ अमीर लोगो से पास ४०२ किलो सोना । यानी जिस आदमी में का रूतबा १% का था वो अब 0.2% हो गया । यानी बिना किसी मेहनत से बैंक की कृपा से 2 अमीर बंदे 1% के ४०.२% पहुँच गये (४० गुणा बडत) और ९८ गरीब बंदे १% से ०.२% पर लुडक गये (५ गुणा निचे) ।

जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

इन दोनो कदमों के बाद बडते है तीसरे कदम की ओर ।

तीसरे कदम में ये हुआ की सरकार ने पुराने बैंक खतम कर दिये और सोने चाँदी के सिक्को की जगह पेपर नोट (कागज के नोट) को ही मुख्य करंसी मान लिया । नये बैंक बने जो इस पेपर नोट को रखते थे ।

फिर पेपर नोट चलने लगे । जब  पेपर नोट थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना  पेपर नोट हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई  पेपर नोट बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" मिल जाती था । ये रसीद ही शुरूआती "बैंक मनी" थे ।

बैंकर लोगो को “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” बनाना आसान था बजाय कि नोट छापने की और लोगो को भी इन "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना "पेपर मनी" होता था उतनी ही "बैंक मनी" (यानी डीजीटल मनी) होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को चौथा कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी पैसे में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था ।  इस तरह बैंकर लोगो को फिर से अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था गरीबो को ।

चलो चलते है पाँचवे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास पेपर नोट होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस रूपये के नाम की “डीजिटल मनी (चेक, लोन)” देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा । ये था पाँचवा कदम जिससे काफी सारी ऐसी बैंक मनी बनाये गये जिसके समानांतर कोई रूपया था ही नही ।

लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब पेपर नोट में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो “चेक, डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिग” से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना नोट बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना पैसा  बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने डिजीटल मनी  बाँट रखी है उतने कागज के नोट तो है ही नही बैंक में ।

(२) वर्तमान

आज दिल्ली जैसे महानगरो में रहने वाले लोगो की सेलेरी एटीएम कार्ड के अंदर आती है और कार्ड से ही खर्च हो जाती है । दिल्ली वालो को बस सब्जी और आटो वाले के लिये ही पेपर नोट की जरूरत पडती है । 

इस पाँचवे कदम के  के चलते दुनिया के महाअमीर लोग और भी महामहाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे नोट के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक इनको असली नोट से कई गुणा ज्यादा की बैंक मनी देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देने लगी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और गरीब हो गया । कैसे ? वो तो उपर बताया ही है । जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

अब चलते है हमारे असली सवाल की ओर  ।

  • पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
  • दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
  • तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।

ये तीनो बाते गलत है, मै बताता हूँ की असलीयत में क्या होता है। माना आपको २००० रूपये के केमरे की जरूरत है और आप किसी शोप पर क़ेडिट कार्ड उपयोग करते हो तो बैंक आपको कोई असली रूपया नही देता है । वो आपके खाते में लिख देगा -२००० (माइनस २ हजार) और दुकान वाले के खाते में लिख देगा +२००० ! चाहे आप लोन लो या किसी भी प्रकार का उधार, बैंक वाले आपको असली के नोट नही देते है वो आपको डीजीटल मनी देते है जिसका कोई अस्तित्व ही नही है ।

आज हमारी अर्थव्यवस्था में ५% केश है और बाकी ९५% डीजीटल मनी है जो की हमारे बैंको ने मनमाने तरीके से मार्केट मे डाली है । ये सारा पैसा कंपुटर में ही अस्तित्व रखाता है । हमको पैसा कमाने में बहुत मेहनत लगती है  लेकिन बैंक वाले बटन दबा  कर मनचाही ”बैंक मनी” अमीर लोगो को धंधे खोलने के नाम पर दे देती है  जिसको हमे वापस कमाने के लिये इन कंपनीयों के अंदर काम करना पडता है ।

आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये सब एक प्रणाली के अंतर्गत होता है जिसको नाम दिया गया है - ”Fractional Reserve System”  ! 

(४) Fractional Reserve System

दुनिया के सारे देशो में एक केंद्रिय बैंक होता है । जैसे युके में बैंक ओफ इंग्लैंड है, भारत में आरबीआई है अमेरीका में फेड है ।

ये केंद्रीय बैंक अपने अधीन बैंको के साथ ही Fractional Reserve System को चलाते है ।

हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है पर बैंकिंग सिस्टम और उसकी प्रणाली में कोई लोकतंत्र नही है । FRS में जो भी नया पैसा बैंक पैदा करती है वो सारा पैसा उधार के रूप में पैदा होता है और उधार चुकाने पर खतम हो जाता है ।

FRS को समझना बहुत आसान है ।  मान लो रामू ने १०० रूपये (पेपर नोट) बैंक ने जमा किये । तो बैंक उसमें से ५ रूपये रख लेती है बाकी ९५ (डीजीटल मनी) वो किसी को लोन वो श्यामू को देती है । श्यामू इस लोन से मीरा से सामान लेता है, मीरा बैंक में ही ९५ लाकर जमा कर देती है ।

मीरा ने जो पैसे बैंक में डाले वो बैंक के ही थे जिसे हम बैंक मनी बोलते है, दिक्कत यहाँ से चालू होती है जब बैंक इस ९५ को भी नई जमा पूँजी मान लेती है और फिर से इसे लोन के लिये आगे कर देती है । इस बार बैंक ९५ में से ४.२५ अपने पास रख लेती है और बाकी के ९०.७५ रूपये फिर से लोन देती है ।  इस प्रकार बैंक ने दो बार लोन देकर १०० रूपये के १०० + ९५ + ९०.७५ = २८५.७५ रूपये दिखा दिये । बार बार इसी चक्र को बरा बार चलाया जाये तो  होते है २००० रूपये ।

इस प्रकार जब भी बैक में १०० असली पैसा जमा होने पर बैंक २००० रूपया बना देती है । १९०० रूपया उधार के रूप में बनाया गया है ।  ये १९०० रूपया डीजीटल मनी है जो बैंक अपनी मनमानी तरीके से बाँटती है ।

भारत की सारी जनता उधार को कभी भी नही चुका सकती क्योंकी उधार ब्याज के साथ चुकाना पडता है और सारी जनता को ब्याज के साथ चुकाने के लिये जितनी डिजिटल मनी है उससे ज्यादा मनी लानी पडेगी । फिर से नई मनी (रूपया) बनाना पडेगा । बैंक नया रूपया उधार के रूप में ही बनाता है तो ये कभी उधार चुकने वाला नही है ।

आसानी से समझने के लिये पूरी दुनिया को एक गाँव मान ले, और सोने के सिक्को को रूपया । अब मान लो पूरी दुनिया का सोना १०० किलो ही है जो सारा का सारा उधार के रूप में बँट गया तो पूरी जनता को ११० किलो सोना लौटाना पडेगा जो की संभव ही नही है ।

जैसा की मैने बताया की जब भी बैंक नया लोन देती है वो डीजीटल मनी के रूप में नया पैसा पैदा करता है, इसके अलावा एक सच ये भी है की जब लोन चुकाया जाता है तो पैदा अर्थव्यवस्था से खतम भी होता है । अगर भारत की जनता किसी जादू से लोन चुका दे तो भारत की ९५% पूँजी खतम हो जायेगी ।

इसी बैंकींग सिस्टम ने ही अमीरो को महाअमीर और गरीबो को महागरीब बना दिया है । बडे हुये हाउसिंग प्राईज का जिम्मेदार भी यही सिस्टम है ।

(३)भविष्य

अब धीरे धीरे हमारा सिस्टम आखरी और छटे कदम की ओर जा रहा है । इस सिस्टम में जिस तरीके से सोने चाँदी के सिक्के गायब कर दिये गये उसी तरीके से पेपर नोट भी गायब कर दिये जायेंगे । हमें एक केशलेश (cashless) समाज की ओर धकेला जा रहा है । जहाँ पर अमीरो और गरीबो के बीच की खाई कभी नही भर पायेगी । सारी अर्थव्यवस्था की नकेल बैंकर माफीया लोग के साथ में आयेगी ।

यह मेरा पहला लेख है, भाषा को बहुत ज्यादा आसान बनाने की कोशिश की गई है । इस विषय पर मैं लगातार शोध कर रहा हूँ हो सकता है मेरी कोई बात थोडी सी गलत हो लेकिन मोटा मोटा आप ये मान ले की बैंकिंग सिस्टम को बैंकर माफिया चला रहे है । आरबीआई की नकेल भी उन्ही के साथ में है ।

आप मेरा विडीयो  देख सकते हो


इसके अलावा ये वेबसाईट है जिसपर जाकर आप भी काफी कुछ सीख सकते हो ।

http://www.positivemoney.org/issues/debt/

लेखक - नरेन्द्र सिसोदिया (http://vichar.narendrasisodiya.com)



4 comments:

  1. ++1.... i support you.....
    but one thing that should be clear first that what is the ultimate solution for this system.....

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  2. If any one wants solution then he must listen to speeches of Bhai Rajiv Dixit. In many of his speeches he has said that if we really have to come out of this debt trap then our economy should be based on cooperation and not on competition. The more any economy increases competition the more it goes towards monopoly. Further, in today's scenario majority of the loans are not repaid by big business houses which gets converted into NPAs n their ultimate cost is borne by the common public. Since these loans r created by banks then any govt. can write them off n can make the economy debt free.This will have initial impact on the economy where many big production houses will collapse but subsequently it will also lead to flourishing of cottage n small scale industries. Then these banks can be used as platform for earning taxes for the govt. n notbas agency for loans n debt. This way disparity can be removed.

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  3. Thank you very much. This article is of great importance.

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  4. Thanku vry much...this is very informative...Gov. should implement some strong guidelines for the bankers..n also make transparency in banking system. & I heard Bhai rajiv dixits speeches regarding this....i think the solution is "ecomomy based on cooperation & not on comprtrtion.

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