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Sunday 29 December 2013

मनी गेम

कुछ विषय ऐसे हैं जो दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं, पैसे का विषय उन में से एक है । ये मानव जात की भावनाओं से जुड गया है क्यों की मनव के लिए पैसे ही सारी समस्या का उपाय है । और पैसा ही सारी समस्या खडी करता है । समस्या खडी इस लिए होती है की मुद्रास्फीति की दर चढ़ता जाता है । जाहिर है, वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढती है फिर उपभोक्ताओं के लिए इस की किमत बढ जाती है । उपभोक्ता की खरीद शक्ति बढाने के लिए उस की आमदनी बढानी पडती है, मुद्रा छाप कर कॅश मुहैया कराना पडता है । इस लिए मुद्रा आपूर्ति वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति के अनुपात में बड़ा हो जाता है और ऐसा कुचक्र मुद्रास्फीति की दर बढता रहता है ।

मौजुदा करंसी का अपना कोई मुल्य नही है; सिर्फ सेवा या सामान खरीदा जा सकता है । व्यक्ति या राष्ट्र की संपत्ति का आधार उस बात से आंका जाता है की उसने सेवा या किमती सामन कितना उत्पादित किया, कितना वितरित किया और कितना पासमें है, नही की पैसे कितने हैं या कितने प्रिन्ट किये । वास्तव में एक राष्ट्र बिना किसी मुद्रा से लंबे समय तक जीवित रह सकता है अगर सारे उत्पादन सही ढंग से हो रहे हो । सेवा के बदले सेवा, सेवा के बदले सामान, सामान के बदले सामान; ऐसे ही हजारों साल तक राष्ट्र जीवित थे जब करंसी नही खोजी गई थी । वस्तु विनिमय( barter system) का ये सिस्टम १९६० तक भारतमें चलता था करंसी होते हुए भी । उत्पादन और वस्तु विनिमय सभी अर्थव्यवस्था का आधार हैं ।

करंसी का मूल उद्देश्य है वस्तुओं और सेवाओं के आदान प्रदान की सुविधा बढाना ।

सिक्के और कागजी मुद्रा मूल रूप से वस्तु विनिमय की सहायता करने के लिए बनाए गए थे । इस से लोगों को वास्तविक सामान उठाकर जाने की या तुरंत सेवा प्रदान करने की जरूरत नही रही, व्यापार मे आसानी हो गई ।

कागजी मुद्रा की शुरूआत एक "वचनपत्र" (promissory notes) के रूप में हुई थी । वचनपत्र एक ऋण का भुगतान करने के लिए एक लिखित वादा होता है । वचनपत्र लिखनेवाला एक निश्चित मात्रा में सामान प्रदान करने का वादा करता है, कगज की मुदा घारक जब मुद्रा वापस करता है तो वो सामान प्रदान करना पडता है ।

धातु के सिक्के की जगह कागज के नोट का उपयोग १६०० में शुरु हुआ जो हमारी आधुनिक मौद्रिक प्रणाली बन गई । इस नींव रखनेवाले जौहरी थे । जौहरी के पास आमतौर पर शहर में सबसे मजबूत तिजोरियां और लोकर बोक्स होते थे । इस कारण से, कई लोग अपना सोना चांदी या सिक्के हिफाजत के लिए तिजोरीमें रखने के लिए आते थे । उस के बदले में एक कागज की चिठ्ठी मिलती थी जीस पर सोने का वजन आदी लिखा होता था, चिठ्ठी वापस करने पर वो सोना वापस करने का वादा होता था । दुसरे वो लोग भी आते थे जीन को सोने पर उधार धन की जरूरत थी । उन की चिठ्ठि में व्याज के साथ धन मिलने पर सोना वापस करने का वचन होता था ।

पहले प्रकार की वचनपत्री एक प्रारंभिक नोट था जो बाजार में चलने लगा । जीसे सोना चाहिये था वो जौहरी से सोना ले सकते थे । लेकिन जनता को लगा ये तो अच्छा तरिका है, छोटे बडे सोने के जथ्थे पर चिठ्ठियां कटाने लगे, जौहरी के बाप का क्या जाता था, चिठ्ठियां बनाने लगे, किसी की चिठ्ठी खो जाती थी तो उतना फायदा जौहरी को हो जाता था, सोना वापस नही करना पडता था और वापस देने पर सर्विस के बहाने थोडा सोना काट लेने लगे थे या अशुध्धि मिला देते थे । जनता के लिए बहुत अच्छा हो गया, नोट जेब में भी रख सकते हैं, बाजार जाते समय राजा के बनाये भारी भरकम सिक्कों की थैली साथ ले जाने की जरूरत नही रही ।

एक नया रिवाज बना, जौहरियों की इज्जत बढने लगी, जनता का भरोसा भी बढा । जीस आदमी को वाकई में सोने की जरूरत थी वही अपना सोना वापस मांगता था वरना नोट घरमे ही रखते थे । जनता और बाजार ने उस सिस्टम को स्विकार लिया । जब कोइ जौहरी के पास अपने ही नोट ले के गहने बनवाने के लिए जाता था तो मन ही मन मुस्काता था क्यों की जौहरीओं ने दुसरे छोटे बडे व्यापारियों को दूसरी प्रोपर्टी पर हजारों लाखों का कर्ज देकर बाजार में नकली नोट उतार दिये थे, उस यकिन के साथ की अब ९० % जनता अपना सोना वापस नही मांगेगी जो १० % मांगने आयेन्गे उसे दे दिया जायेगा ।

फिर तो बहुत नाटक हुए, बॅन्करों ने जौहरीयों की पोल खोली तो अपना सोना मांगते जन समुह के डर से भागना पडा, बॅन्करों ने वही सिस्टम अपनाया । छोटे बॅन्करों की पोल बडे बॅन्करो ने खोली तो बडे बॅन्करो के आगे सरेन्डर होना पडा। बडे बॅन्करने राज के दरबार में रहे अपने प्यादों का उपयोग कर के कागजी नोट को पूरे राज्य में स्विकार करवाया और इज्जत दिलवाई ।

ये बडे बॅन्क थे बॅन्कर माफिया रोथ्चिल फेमिली के । इन्ही बेंकरों का सिस्टम पूरे युरोपमें चलने लगा । हिटलर ने तोडना चाहा तो दुसरा विश्वयुध्ध इन बॅन्करों ने ही करवाया ।

इन बॅन्करों ने वही पूरानी जौहरी वाली टेक्निक अपनाते हुए नोट बनाने के लिए फॅड रिजर्व बनाया जो थोक में नोट बनाने की परमीशन देती है अपनी ही सेन्ट्रल बेन्कों को जो देश विदेश में फैले हुए हैं । उनमें से भारत का रिजर्व बेन्क भी है । देश के सोने के अवेज में या अन्य संसाधन पर वो सब सेन्ट्रल बॅन्क फॅड से परमीशन मांगते हैं अपने अपने देश की करंसी छापने के लिए । दुनिया के अर्थतंत्र का कबजा करने के लिए, जगत के देशों पर दादागीरी करने के लिए युएन नाम की संस्था बनाई, अमरिका जैसे प्यादे देश को सशक्त बनाया, नाटो की सेना बनाई । अब सोने के मामले में उन की खूद की पोल खूली है तो सोना पाने के लिए हाथपांव मार रहे हैं और देश विदेश के अपने प्यादे राज नेताओं के जरिये उन देशों का सोना लूटने की कोशीश कर रहे हैं ।

भारत की रिजर्ब बेन्कने पद्मनाभ मंदिर को लूटने प्लान तो बना ही लिया है साथ में शीरडी, तिरुपति, सिध्धि विनायक, नटराज मंदिरों को भी कहा है सोना देने के लिए । सोने को इम्पोर्ट किये बीना ही भारत की जनता की सोने की डिमांड पूरी करना है ।

कितना बडा भद्दा मजाक ! ! एक तरफ भारतिय नागरिक सोना ना खरीदे ऐसी सलाह दी जाती है, नागरिकों को रोकने के लिए सोने पर कितने प्रतिबंध लगा रहे हैं तो मंदिरों का सोना हडपने के लिए बेचारे नागरिक याद आये । कौन नागरिक मंदिरका लूटा सोना खरिदना चाहेगा । हम जानते हैं मालिको कों सोने की खेप भेजनी है ।

मामला सेन्सिटिव है ऐसा बोलकर नाम नही बताने की बात कह कर एक बॅन्कर बोलता है मंदिरमें पडा निर्जिव सोना अभी रुपये की हालत सुधार सकता है । रे मुर्ख, मंदिर के सोने का क्या संबंध है रूपये से ? क्या मंदिरों के सोने के अवेज में रूपये छापे थे ? छापे तो तो पूछने की भी जरूरत नही समजी ? हवा के भरोसे ही नोट छाप दिये, अब मालिकों की हवा निकल गई तो तुम लोगों की भी हवा निकल गई और हवा का गॅप मंदिरों की मिल्कर से भरना चाहते हो । जरा चर्च और मस्जिदबालों को भी पूछ लो मेरे से भी तगडा जवाब मिलेगा ।

दुसरा बेन्कर कहता है तिरुपति दुनिया का सबसे धनवान मंदिर है, लगभग १००० टन सोने का मालिक है । पूरे देश के पास १८००० से ३०००० टन है । अभी मंदिरों के ट्रस्टी तैयार नही है ।
अभी आरबीआई का ऐसा कोइ प्लान नही है, आरबी आई से ऐसी कोइ चर्चा नही हुई ।

आरबी आई का प्लान नही है तो ऐसी खबर क्यों आई मिडिया में ? जनता का रिएक्शन जानना चाहते हो ? आरबीआई से चर्चा कर सके ऐसा तू बडा व्यक्ति, मंदिरों के सोने के कयास निकालता आदमी, क्या हवा बना रहा है मंदिरों से सोना हडनने की ? नागरिकों का ध्यान आशाराम पे लगा दो और पिछे से मंदिर को लूट लो, आसान रहेगा ।

जनता या मंदिर सोना जरूर देते, लेकिन लेनेवाला सुभाष बोज होना चाहिए, हजारों भामाशाह है भारत में राणा प्रताप तो लाओ । चोर के हाथ सोना कौन देगा ?


By -  Siddharth Bharodiya

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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│  http://narendrasisodiya.com
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Saturday 28 December 2013

कैसे और क्‍यों बनाया अमेरिका ने अरविंद केजरीवाल को, पढि़ए पूरी कहानी!

संदीप देव, नई दिल्‍ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह 'राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)' ने घोर सांप्रदायिक 'सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम' का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर 'परिवर्तन' नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो 'श्रीमान ईमानदार' को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में 'परिवर्तन' में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' ने 'उभरते नेतृत्व' के लिए 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके।  इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था।  

अरविंद को समझने से पहले 'रेमॉन मेग्सेसाय' को समझ लीजिए!
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो  'सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)' अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी 'फोर्ड' द्वारा संचालित 'फोर्ड फाउंडेशन' एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में 'रेमॉन मेग्सेसाय' को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह 'रेमॉन मेग्सेसाय' का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। 'रेमॉन मेग्सेसाय' के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय 'छवि निर्माण' से लेकर उन्हें 'नॉसियोनालिस्टा पार्टी' का  उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी 'एडवर्ड लैंडस्ले' ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई।

ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और 'डर्टी ट्रिक्स' के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति 'क्वायरिनो' की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की 'गढ़ी गई ईमानदार छवि' और क्वायरिनो की 'कुप्रचारित पतित छवि' ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।

उन्हीं 'रेमॉन मेग्सेसाय' के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' मिलकर अप्रैल 1957 से 'रेमॉन मेग्सेसाय' अवार्ड प्रदान कर रही है। 'आम आदमी पार्टी' के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व 'आम आदमी पार्टी' के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही 'रेमॉन मेग्सेसाय' पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी 'फोर्ड फाउंडेशन' के फंड से उनका एनजीओ 'कबीर' और 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' मूवमेंट खड़ा हुआ है।

भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग!
'फोर्ड फाउंडेशन' के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ''कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।'' यही नहीं, 'कबीर' को 'डच दूतावास' से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।

अंग्रेजी अखबार 'पॉयनियर' में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ 'हिवोस' के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है।  इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। 'हिवोस' को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।

डच एनजीओ 'हिवोस'  दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं।  इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने 'पनोस' नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय 'पनोस' के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी 'पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है। 'सीएनएन-आईबीएन' व 'आईबीएन-7' चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई 'पॉपुलेशन काउंसिल' नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही 'रॉकफेलर ब्रदर्स' करती है जो 'रेमॉन मेग्सेसाय'  पुरस्कार के लिए 'फोर्ड फाउंडेशन' के साथ मिलकर फंडिंग करती है।

माना जा रहा है कि 'पनोस' और 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल 'सीएनएन-आईबीएन' व हिंदी चैनल 'आईबीएन-7' न केवल अरविंद केजरीवाल को 'गढ़ने' में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को 'इंडियन ऑफ द ईयर' का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। 'इंडियन ऑफ द ईयर' के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी 'जीएमआर' भ्रष्‍टाचार में में घिरी है।

'जीएमआर' के स्वामित्व वाली 'डायल' कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 'सीएजी'  ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को 'गढ़ा' है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा।

'जनलोकपाल आंदोलन' से 'आम आदमी पार्टी' तक का शातिर सफर!
आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का नारा देते हुए वर्ष 2011 में 'जनलोकपाल आंदोलन' की रूप रेखा खिंची।  इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में 'लॉंच' कर दिया।  अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद 'कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया' के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, 'आम आदमी पार्टी' के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई।

विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और 'कैश फॉर वोट' घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।  

आगे बढ़ते हैं...! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी 'आम आदमी पार्टी' खड़ा करने में सफल  रहे।  जनलोकपाल आंदोलन के पीछे 'फोर्ड फाउंडेशन' के फंड  को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से 'कबीर' व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया।  लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने 'बिजनस स्टैंडर' अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने 'कबीर' को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया।

सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था 'आवाज' की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी 'आवाज' ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी 'आवाज' संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस 'फंडिंग का खेल' खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और 'आम आदमी पार्टी' उसी की देन हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी 'आम आदमी पार्टी' में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि 'फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010' के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

अमेरिकी 'कल्चरल कोल्ड वार' के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल!
फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी 'सीआईए' की नीति को 'कल्चरल कोल्ड वार' का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति  व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने 'सेक्यूलरिज्म' के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से 'भारत माता' की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को 'सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का' समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही।  
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और 'आम आदमी पार्टी' के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?

प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को 'क्रांतिकारी सेक्यूलर दल' के रूप में प्रचारित करने लगी।  प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे।

अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके।  यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी।  आम आदमी पार्टी के नेता  प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी 'अपनी राजनैतिक पार्टी' हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से 'लिटमस टेस्ट' था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी 'ईमानदारी' और 'छद्म धर्मनिरपेक्षता' का 'कॉकटेल' तैयार कर रही थी।

8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस 'कॉकटेल' का ही परीक्षण  है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?

आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके 'एसएमएस कैंपेन' की पारदर्शिता ही कितनी है? अन्ना हजारे भी एसएमएस  कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस  कार्ड के नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा, ''मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।''

प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके 'पंजीकृत आम आदमी'  ने जब देखा कि 'भारत माता' के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर 'मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल' शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, 'इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है', तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि 'बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे।' इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।

याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि 'हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।' उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके।  वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं।

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया 'आखिरी पत्ता' हैं अरविंद!
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में।  मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर 'आम आदमी पार्टी' का निर्माण कराया गया है।

दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से 'आम आदमी पार्टी' की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ''भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।''

कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी 'आम आदमी पार्टी' को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। 'फोर्ड फाउंडेशन' ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का 'ब्रेन चाइल्ड' बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।

'आम आदमी पार्टी' व  उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने 'मेल टुडे' अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और 'मेल टुडे' अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। 'मेल टुडे' से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर 'टुडे ग्रुप' ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र मोदी को रोकने लिए 'कांग्रेस-केजरी' गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण 'मेल टुडे' के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी, इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित 'आम आदमी पार्टी' की असलियत का पूरा ब्यौरा है।

शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार 'मेल टुडे' में लिखा था, ''अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला।  वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं।  केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।''

''आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए 'आम आदमी पार्टी' के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया।  केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें।  एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?''

''बीजेपी 'आम आदमी पार्टी' को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया।  ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।''

''दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का मतलब सिर्फ भ्रष्‍टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता। कांग्रेस की कारगुजारियों की वजह से भ्रष्‍टाचार के अलावा भी कई सारी समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती कीमतें, पड़ोसी देशों से रिश्ते और अंदरूनी लॉ एंड ऑर्डर समेत कई चुनौतियां हैं। इन सभी चुनौतियों को बिना वक्त गंवाए निबटाना होगा।''

''मनमोहन सरकार की नाकामी देश के लिए मुश्किल बन गई है। नरेंद्र मोदी इसलिए लोगों की आवाज बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इन समस्याओं से जूझने और देश का सम्मान वापस लाने का विश्वास लोगों में जगाया है। मगर केजरीवाल गवर्नेंस के व्यापक अर्थ से अनभिज्ञ हैं। केजरीवाल की प्राथमिकता देश की राजनीति को अस्थिर करना और नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है।  ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर मोदी एक बार सत्ता में आ गए तो केजरीवाल की दुकान हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।''

लेखक -


Thursday 26 December 2013

रेफरेंडम का खेल

खाजतक चेनल में कल दो चीजें देखने को मिली ।

(१) एक ऍड में कुछ ऐसा बोला गया था "रियल लोकशाही सर जी"
अभी दिल्लेमें आप पार्टी जो नौटंकी कर रही है उन सबका जस्टिफिकेशन था ।
सरकारों को हर समय हर निर्णय जनता के साथ मिलजुल कर, जनता से पूछ कर करने चाहिए ।
(२) केजरीवाल को शेर बनाया गया, शेर के आते ही दिल्लीमें खलबली मच गई, अधिकारी वर्ग इधर उधर भागने लगे । एक जगह तो फाईलें जलाते हुए दिखाया गया ।

दानव समुदायने ८० के दशक से तिसरा युध्ध छेड दिया है । उस समय ही अमरिका पर अपना कबजा कर लिया था, अमरिका का रोम रोम उन दानवों का कर्जदार है । आज अमरिका पूरी तरह दानवों के कबजे में आ गया है । अमरिका में साम्यवादी प्रणाली लाने के लिए चीन को प्रेरित किया जा रहा है अमरिका का टेकओवर करने के लिए ।

भारत में संचार माध्यमों में निवेश के बहाने ९० के दशक में दानव समुह की मिडिया को भारत में भेज दिया है, युध्ध के एक सैनिक के तौर पर । भारत का कोइ भी आदमी अगर राष्ट्रवादी है तो मिडिया प्रहार करना शुरु कर देता है, ग्लोबलिस्ट गद्दारों को तारिफ के पूल बांधते हुए हिरो बना देता है ।
समाचार माध्यमों का काम होता है समाचार देना पर समजदार जनता देख रही है की मिडिया समाचार नही देता है अपने आकाओं के लिए खूद लड रहा है, खूद पोलिस बन गया है, खूद जज बन गया है ।

दानवों ने भारत में हजारों की तादाद में स्वयंसेवी संस्थाओं को खडा कर दिया है, अरबों रुपये उन पर लगाए हैं, वो रात दिन दानवों के एजेन्डे पर ही काम कर रही है । सामान्य जनता को पता भी नही होता वो क्या सेवा कर रहे हैं । सेवा नाम से ही भारत का भोला नागरिक अहोभावित हो जाता है, विश्वास कर लेता है ।

आदमी कितना भी पढ ले लेकिन वो जब मानव समुदाय बनता है तो भेंड बन जाता है, उसकी पढाई लिखाई हवा हो जाती है, उसे कोइ भी दानव बरगला सकता है । भेंडों को आपसमें टकरा देता है । दानव समुदाय ने भेंडोंकी आपस में टकराने के अवगुण देखकर ही जगत के देशों में लोकशाहियां थोपी थी, असली राज्यकार्ताओं से देशों को छीन लिए थे । मानव भेंडों को और जोर से टकराने के लिए उनमें भेद भरे जाते हैं, शत्रुता करवाई जाती है और वो भी जुठी समानता और एकता के बहाने ।

"डिवाईड एन्ड रुल" दानव समुक का सदियों पूराना

केजरीवाल का पोइन्ट (१) उस की समज हमे प्रविन आर्य ने दी है ।

रेफरेंडम कितना खतरनाक हो सकता है और वामपंथी कैसे देश को बर्बाद भी कर सकते है वो किसी युगोस्लावियन से पूछो कैसे 10 साल मैं रेफरेंडम करा करा के देश के 4 टुकड़े करवा दिया वामपंथियो ने। सन 2003 तक ये एक देश था पर वामपंथियो और CIA ने मिल कर रेफरेंडम करवा करवा कर इस देश के 4 टुकड़े कर दिए । 2003 मैं सर्बिआ बने फिर 2006 मैं मॉन्टेंगरो और 2008 मैं कोसोवो और आज युगोस्लाविया एक बड़े देश से एक छोटा सा देश रह गया।

वैसे वही खतरा आज हमारे देश पर मंडरा रहा है क्योंकि फोर्ड और CIA से पोषित वामपंथी विचारधारा वाले लोग सत्ता मैं आ रहे है और इन्होने भी रेफरेंडम का बाजा बजाना चालू कर दिया है और कश्मीर को अलग करने कि बात भी बोल दी है रेफरेंडम के तरीके से बाकि अब भी युवाओ को नहीं समझ आया तो देश के टुकड़े होने तय है ।
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और रसिया को तोडने के लिए इस से उलट किया गया था । गोर्वोचेव नाम के खुजली को जगत की मिडिया ने हिरो बना दिया, उसे रसिया का प्रमुख बना दिया । उसने रसियन की इकोनोमी की वाट लगा दी, अलगाव वादियों को बढावा दिया, रेफरंडम का नाटक किया, बहुमति जनता रसिया के विभाजन के खिलाफ थी पर जनता की बात नही सुनते हुए रसिया के १०-१२ टुकडे कर दिये थे ।

ये जुठे साम्यवादी और नक्षली जनमत का बहाना निकालते हैं, पर करते हैं वही जो उन को करने के लिए कहा गया है ।

पोइन्ट (२)
केजरिवाल को जनता की नजरों मे हिरो बनाने के लिए मिडिया दिन रात लगा हुआ है । उस की छोटी से जीत को एक रेकोर्ड, एक किर्तिमान और ऐतिहासिक बता रहा है । देश में उस के सिवा कोइ शरिफ इन्सान ही नही है वो बात साबित कर रहे हैं । दिल्ली की कुछ संस्थाओं में प्यादे फिट कर के नकली फिल्में बनाई । केजरीवाल के डर से सब अधिकारी वर्ग डरा हुआ है ऐसे ऐसे बयान लिये गए, एक जगह कागज जलाये गये और बताया गया की अधिकारी घोटाले की फाईल जलाने लगे हैं । घोटाले की फाईल बनाई नही जाती, अगर बनाई है तो चुनाव के दूसरे दिन ही गायब हो जाती है । "आजतक" के केमेरे वहां तक नहीं पहुंचता ।


कर्ज घोटाला

बडे बडे कर्ज माफ कर दिये जाते है और गरीबो से वसूला जाता है मोटा ब्याज ।
यही है बैंकिंग सिस्टम

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│  नरेन्द्र सिसोदिया
│  स्वदेशी प्रचारक, नई दिल्ली
│  http://narendrasisodiya.com
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बैंकींग लूट के इतिहास की कहानी

सब लोगो को, बैंक से उधार या लोन या फिर क्रेडिट कार्ड उपयोग करने की प्रणाली नहीं पता होने के कारण ३ तरह की गलतफहमी है
  • पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
  • दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
  • तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।

सच्चाई का इन तीन बातों से कोई लेना देना है ही नहीं । अगर आप पूरी सच्चाई जानना चाहते तो पूरी कहानी पढे ।

(१) भूतकाल

कहानी शुरू होती है कई सालो पहले जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे । तक बैंकिंग सिस्टम नही था । सिर्फ अर्थ-शास्त्र था । आज अर्थ-शास्त्र को बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार ने पूरी तरह से हथिया लिया है । ये सब कैसे हुआ ये जानते है ।

पहले सोने और चाँदी के सिक्के चलने लगे । जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना सोना चाँदी हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई सोना चाँदी बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "पेपर रसीद" मिल जाती थी । ये पेपर रसीद ही शुरूआती पेपर नोट थे । बैंकर लोगो को रसीद बनाना आसान था बजाय कि सोना खोदने की और लोगो को भी इन कागज के नोट को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना सोना होता था उतनी ही रसीद होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को पहला कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी सोने में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था ।  इस तरह बैंकर लोगो को पहली बार इतिहास में अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का पहला प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था ग़रीबों को ।

चलो चलते है दूसरे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास सोना होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस सोने के नाम की नोट देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा । ये था दूसरा प्रावधान जिससे काफी सारी ऐसी बैंक नोट बनाये गये जिसके समानांतर कोई सोना था ही नही ।

लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब सोने के सिक्को में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो कागज के नोट से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना सोना बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना सोना बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने नोट (रसीद ) बाँट रखी है उतना सोना तो है ही नही बैंक में ।

इस दूसरे कदम के चलते दुनिया के अमीर लोग महाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे सोने के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक असली सोने से कई गुणा ज्यादा की रसीदे (नोट) देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देती थी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और ज्यादा गरीब हो गया । कैसे ? अरे भाई मान लो १०० लोग है हर एक के पास १ किलो सोना है । पूरी अर्थव्य्वस्था है १०० किलो सोने की  और हर एक बंदे का मार्केट में रूतबा १% का है। अब बैंकर लोगो ने ५०० किलो की रसीद बना दी है और ४०० किलो की रसीद २ अमीर लोगो को दे दी । इस कारण से ९८ गरीब लोगो के पास ९८ किलो सोना है और बाकी २ अमीर लोगो से पास ४०२ किलो सोना । यानी जिस आदमी में का रूतबा १% का था वो अब 0.2% हो गया । यानी बिना किसी मेहनत से बैंक की कृपा से 2 अमीर बंदे 1% के ४०.२% पहुँच गये (४० गुणा बडत) और ९८ गरीब बंदे १% से ०.२% पर लुडक गये (५ गुणा निचे) ।

जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

इन दोनो कदमों के बाद बडते है तीसरे कदम की ओर ।

तीसरे कदम में ये हुआ की सरकार ने पुराने बैंक खतम कर दिये और सोने चाँदी के सिक्को की जगह पेपर नोट (कागज के नोट) को ही मुख्य करंसी मान लिया । नये बैंक बने जो इस पेपर नोट को रखते थे ।

फिर पेपर नोट चलने लगे । जब  पेपर नोट थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना  पेपर नोट हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई  पेपर नोट बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" मिल जाती था । ये रसीद ही शुरूआती "बैंक मनी" थे ।

बैंकर लोगो को “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” बनाना आसान था बजाय कि नोट छापने की और लोगो को भी इन "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना "पेपर मनी" होता था उतनी ही "बैंक मनी" (यानी डीजीटल मनी) होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को चौथा कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी पैसे में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था ।  इस तरह बैंकर लोगो को फिर से अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था गरीबो को ।

चलो चलते है पाँचवे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास पेपर नोट होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस रूपये के नाम की “डीजिटल मनी (चेक, लोन)” देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा । ये था पाँचवा कदम जिससे काफी सारी ऐसी बैंक मनी बनाये गये जिसके समानांतर कोई रूपया था ही नही ।

लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब पेपर नोट में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो “चेक, डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिग” से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना नोट बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना पैसा  बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने डिजीटल मनी  बाँट रखी है उतने कागज के नोट तो है ही नही बैंक में ।

(२) वर्तमान

आज दिल्ली जैसे महानगरो में रहने वाले लोगो की सेलेरी एटीएम कार्ड के अंदर आती है और कार्ड से ही खर्च हो जाती है । दिल्ली वालो को बस सब्जी और आटो वाले के लिये ही पेपर नोट की जरूरत पडती है । 

इस पाँचवे कदम के  के चलते दुनिया के महाअमीर लोग और भी महामहाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे नोट के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक इनको असली नोट से कई गुणा ज्यादा की बैंक मनी देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देने लगी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और गरीब हो गया । कैसे ? वो तो उपर बताया ही है । जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

अब चलते है हमारे असली सवाल की ओर  ।

  • पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
  • दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
  • तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।

ये तीनो बाते गलत है, मै बताता हूँ की असलीयत में क्या होता है। माना आपको २००० रूपये के केमरे की जरूरत है और आप किसी शोप पर क़ेडिट कार्ड उपयोग करते हो तो बैंक आपको कोई असली रूपया नही देता है । वो आपके खाते में लिख देगा -२००० (माइनस २ हजार) और दुकान वाले के खाते में लिख देगा +२००० ! चाहे आप लोन लो या किसी भी प्रकार का उधार, बैंक वाले आपको असली के नोट नही देते है वो आपको डीजीटल मनी देते है जिसका कोई अस्तित्व ही नही है ।

आज हमारी अर्थव्यवस्था में ५% केश है और बाकी ९५% डीजीटल मनी है जो की हमारे बैंको ने मनमाने तरीके से मार्केट मे डाली है । ये सारा पैसा कंपुटर में ही अस्तित्व रखाता है । हमको पैसा कमाने में बहुत मेहनत लगती है  लेकिन बैंक वाले बटन दबा  कर मनचाही ”बैंक मनी” अमीर लोगो को धंधे खोलने के नाम पर दे देती है  जिसको हमे वापस कमाने के लिये इन कंपनीयों के अंदर काम करना पडता है ।

आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये सब एक प्रणाली के अंतर्गत होता है जिसको नाम दिया गया है - ”Fractional Reserve System”  ! 

(४) Fractional Reserve System

दुनिया के सारे देशो में एक केंद्रिय बैंक होता है । जैसे युके में बैंक ओफ इंग्लैंड है, भारत में आरबीआई है अमेरीका में फेड है ।

ये केंद्रीय बैंक अपने अधीन बैंको के साथ ही Fractional Reserve System को चलाते है ।

हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है पर बैंकिंग सिस्टम और उसकी प्रणाली में कोई लोकतंत्र नही है । FRS में जो भी नया पैसा बैंक पैदा करती है वो सारा पैसा उधार के रूप में पैदा होता है और उधार चुकाने पर खतम हो जाता है ।

FRS को समझना बहुत आसान है ।  मान लो रामू ने १०० रूपये (पेपर नोट) बैंक ने जमा किये । तो बैंक उसमें से ५ रूपये रख लेती है बाकी ९५ (डीजीटल मनी) वो किसी को लोन वो श्यामू को देती है । श्यामू इस लोन से मीरा से सामान लेता है, मीरा बैंक में ही ९५ लाकर जमा कर देती है ।

मीरा ने जो पैसे बैंक में डाले वो बैंक के ही थे जिसे हम बैंक मनी बोलते है, दिक्कत यहाँ से चालू होती है जब बैंक इस ९५ को भी नई जमा पूँजी मान लेती है और फिर से इसे लोन के लिये आगे कर देती है । इस बार बैंक ९५ में से ४.२५ अपने पास रख लेती है और बाकी के ९०.७५ रूपये फिर से लोन देती है ।  इस प्रकार बैंक ने दो बार लोन देकर १०० रूपये के १०० + ९५ + ९०.७५ = २८५.७५ रूपये दिखा दिये । बार बार इसी चक्र को बरा बार चलाया जाये तो  होते है २००० रूपये ।

इस प्रकार जब भी बैक में १०० असली पैसा जमा होने पर बैंक २००० रूपया बना देती है । १९०० रूपया उधार के रूप में बनाया गया है ।  ये १९०० रूपया डीजीटल मनी है जो बैंक अपनी मनमानी तरीके से बाँटती है ।

भारत की सारी जनता उधार को कभी भी नही चुका सकती क्योंकी उधार ब्याज के साथ चुकाना पडता है और सारी जनता को ब्याज के साथ चुकाने के लिये जितनी डिजिटल मनी है उससे ज्यादा मनी लानी पडेगी । फिर से नई मनी (रूपया) बनाना पडेगा । बैंक नया रूपया उधार के रूप में ही बनाता है तो ये कभी उधार चुकने वाला नही है ।

आसानी से समझने के लिये पूरी दुनिया को एक गाँव मान ले, और सोने के सिक्को को रूपया । अब मान लो पूरी दुनिया का सोना १०० किलो ही है जो सारा का सारा उधार के रूप में बँट गया तो पूरी जनता को ११० किलो सोना लौटाना पडेगा जो की संभव ही नही है ।

जैसा की मैने बताया की जब भी बैंक नया लोन देती है वो डीजीटल मनी के रूप में नया पैसा पैदा करता है, इसके अलावा एक सच ये भी है की जब लोन चुकाया जाता है तो पैदा अर्थव्यवस्था से खतम भी होता है । अगर भारत की जनता किसी जादू से लोन चुका दे तो भारत की ९५% पूँजी खतम हो जायेगी ।

इसी बैंकींग सिस्टम ने ही अमीरो को महाअमीर और गरीबो को महागरीब बना दिया है । बडे हुये हाउसिंग प्राईज का जिम्मेदार भी यही सिस्टम है ।

(३)भविष्य

अब धीरे धीरे हमारा सिस्टम आखरी और छटे कदम की ओर जा रहा है । इस सिस्टम में जिस तरीके से सोने चाँदी के सिक्के गायब कर दिये गये उसी तरीके से पेपर नोट भी गायब कर दिये जायेंगे । हमें एक केशलेश (cashless) समाज की ओर धकेला जा रहा है । जहाँ पर अमीरो और गरीबो के बीच की खाई कभी नही भर पायेगी । सारी अर्थव्यवस्था की नकेल बैंकर माफीया लोग के साथ में आयेगी ।

यह मेरा पहला लेख है, भाषा को बहुत ज्यादा आसान बनाने की कोशिश की गई है । इस विषय पर मैं लगातार शोध कर रहा हूँ हो सकता है मेरी कोई बात थोडी सी गलत हो लेकिन मोटा मोटा आप ये मान ले की बैंकिंग सिस्टम को बैंकर माफिया चला रहे है । आरबीआई की नकेल भी उन्ही के साथ में है ।

आप मेरा विडीयो  देख सकते हो


इसके अलावा ये वेबसाईट है जिसपर जाकर आप भी काफी कुछ सीख सकते हो ।

http://www.positivemoney.org/issues/debt/

लेखक - नरेन्द्र सिसोदिया (http://vichar.narendrasisodiya.com)



Indian Fractional Reserve Banking exposed - Money As Debt Hindi Video